कवि - प्रिया | Kavi-priya

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Kavi-priya by केशवदास - Keshavdas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ तिन के सुत ग्यारह भये जेठ साई संग्राम । दक्षिण दक्षिशुराज सों जिन जीत्यों संग्राम ॥1३६॥। भरतखरड भूषण भये तिन के भारतसादहि । भरत भगीरथ पारथहि उनमानत सब ताहि ॥ ३७ सुत सोदर च्ूप रामके यद्यपि बहु परिवार । तदपि सबे इन्द्रजीत शिर राजकाज को भार ॥1 ३८ कल्पबक्त सो दानि दिन सागर सो गम्भीर । केशब शुरो सूरसो झज़ुन सो. रणधीर ॥३६॥ ताहि. कछोबाकमल सो दीन्हों चषप राम । बिधि सों साथधव बैठि तहेूँ भूपति बाम अवाम 11४०॥। उनके कोई पुत्र उत्पन्न नहीं होने पाया कि वह स्वर्ग लोक सिधार गये । तब उनके सगे भाई मधुकरशाह राजा हुए । उनके राज्य में किसान कुशलपूर्वक निवास करते थे । उन्होंने सिन्घु नदी के इस 1 ओर ही नहीं प्रत्युत उस ओर दूसरे किनारे पर भी अन्य राजा के राज्य में विजय का डका बजाया । उत पर जो शत्रु चढकर आये वे हार कर गये और जिन पर उन्होंने स्वय चढाई की उन्हे वे सार कर आयें । महाप्रठापी अकबर ने पृथ्वी की चारो दिशाओ को जोत लिया था परन्तु मघुकरशाह ने उसके किले भी अपने अधीन कर लिए । सुलवान अकबर को तो चह साधारण खान सरदार समझते थे और अन्य राजा-रावो को तो कुछ गिनते ही न थे | स्वय मुरादशाह मधुकरशाह से हार गये थे । उन्होंने अपने स्वार्थसाघन के साथ ही साथ परमार्थ से भी स्नेह किया और वह ब्रह्मरघ्र मागे द्वारा तालु फट जाने से शरीर छोड कर स्वर्ग सिघारे । उनके बडे पुत्र दुलहराम तथा छोटे होरिलराव हुए जो बेरियों को मारने वाले भर अपने वश की शोभा थे तथा समस्त पृथ्वी पर उनका प्रभाव था । फिर तीसरे रण-बाँकुरे नूसिह और चौथे रत्तसेन थे जिन्होंने जलालुद्दीन अकबर शाह को हराया था और जिनकी बडी प्रशंसा थी ।




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