श्री अरविन्द विचार दर्शन | Sri Arvind Vichar Darshan

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Book Image : श्री अरविन्द विचार दर्शन  - Sri Arvind Vichar Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री अरविन्द का जीवन और दर्शन शब्दों के परे की बात है । हि यदि मनुष्य इस स्थिति में पहुंच गया तो कृतकृत्य होना चाहिए क्या ? सेस बेड़ा पार हो गया अब कुछ भी करना-धरना नहीं ऐसा कहकर सब प्रकार से निवृत्त होना चाहिए क्या ? महर्षि अरविन्द ने कहा कि निवृत्त नहीं होना चाहिए । एक व्यक्ति मानो चला गया उससे लाभ नहीं । असंख्य लोगों को दुखद स्थिति में छोड़कर स्वयं चले जाना कोई वहुत वड़प्पन नहीं है। उन्होंने कहा कि वहां से लौटना चाहिए। लौटने से वहां का जो अवणं- नीय कुछ है उसका अपने साथ ही आगमन होगा। उसके द्वारा सम्पूर्ण ऐहिक सुष्टि को आध्यात्मिक बनाया जा सकेगा ऐसा अभिनव विचार उन्होंने रखा । परमतत्त्व-प्राप्ति के कौतूहुल के बारे में रामकृष्ण परमहंस एक उदाहरण देते थे । एक बड़ी दीवार है । उसके इस पार सामान्य लोग बच्चों के समान खेल-कूद करते हूँ। कुछ लोगों के मन में उस खेल को देखकर विचार आता है कि इसमें कोई अर्थ सहीं। यह जो दीवाल खड़ी है उसके पार क्या है ? यह देखना चाहिए। कुछ दीवार पर चढ़ने का प्रयत्न करते हैं। पर चढ़ नहीं सकते । उधर देखने के लिए एक छेद है। पर वह इतनी ऊंचाई पर है कि उससे देख नहीं सकते । इसलिए लोग प्रयत्न छोड़ देते हैं । कुछ लोग बलवान होते हैं वे छलांग लगाते हैं । छेद से देखते हैं पर क्षमता न होने के कारण गिर जाते हैं । एकाधघ होता है जो छलांग लगाकर छेद के उस पार चला जाता है पर वापिस नहीं आता । रामकृष्ण जी ने बताया कि कुछ ऐसे भी होते हैं जो उस पार जाते हैं तथा स्वेच्छा से उसी छेद से वापिस आकर लोगों को उसका वर्णन वताकर वहां के परम सौख्य का हृदय में सब प्रकार आकपंण जगाकर लोगों को उसको प्राप्त करने के लिए तैयार करने का प्रयत्न करते हैं । युगों-युगों में एकाध ही ऐसे असामान्य पुरुष उत्पन्न होते हैं जिनके लिए वहां से वापस आना सम्भव रहता है । परन्तु उनके आने से हम लोगों का बड़ा लाभ है । जगत में रहने वाले मनुष्य को कोई काम करना ही होता है । हमारी विचार-परम्परा में सब प्रकार का त्याग आता है किन्तु कमं का त्याग नहीं । क्योंकि कम का सम्पूर्ण त्याग शक्य ही नहीं तो काहे किसका त्याग करें ? एक तो मैं की भावना अर्थात अहंकार का और टुसरा कम फल की आशा का । अहंकार चले जाने के पश्चात मनुष्य भगवान के हाथ में एक उपकरण हूं वस इस नाते से काम करेगा । फिर क्मफल की न कोई इच्छा त कोई अपेक्षा । उससे अपना कोई प्राप्तव्य नहीं । इस प्रकार की विशुद्ध भावना को लेकर मनुष्य को कमें के द्वारा ही भगवान की पुजा कर अपने चारों ओर भगवान का साक्षात्कार करने की अर्थात अपने अन्तःकरण की सामान्य मनो- भूमिका से ऊपर उठकर और भगवान की भूमिका में प्रवेश करने की क्ष मता वैसा दी महापुरुष वापिस आकर हमको दे सकता है। उनका वापस आना इसलिए




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