हिंदी साहित्य का वृहत इतिहास भाग - त्रयोदश | Hindi Sahitya Ka Brihat Itihas Part-trayodas
श्रेणी : इतिहास / History, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40.89 MB
कुल पष्ठ :
572
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६१२ निर्धारण दोगा तथा उनकी जीवन श्रौर कृतियों के विकास में विभिन्न झवस्थाश्यों का विवेचन श्रौर निंदशन किया जायगा | ७ तथ्यों के श्राघार पर सिर््धातों का निर्धारण होगा केवल कल्पना आर संभावनाश्रों पर दी किसी कवि श्रथवा लेखक की श्रालोचना अथवा समीक्षा नहीं की जायगी । ८ प्रत्येक निष्कष के लिये प्रमाण तथा उद्धरण श्रावश्यक होंगे | ६ लेखन में वैज्ञानिक पद़ति का प्रयोग किया जायगा--संकलन वर्गीकरण समीकरण संतुलन श्रागमन श्रादि | । १० ५ माषा श्रौर शेली सुबोध तथा सुरुचिपूर्ण होगी । समा का झारंम से ही यह विचार रहा है कि उदू कोई स्वतंत्र माषा नहीं है बल्कि हिंदी की ही एक शेली है श्रतः इस शैली के साहित्य की यथोचित चर्चा मी घ्ज अवधी डिंगल की भाँति इतिहास में श्रवश्य होनी चाहिए । इसलिये गे के खंडों में इसका भी श्रायोजन किया जा रहा है । यह तेरदवाँ भाग श्रापके संमुख श्रौर दूसरा भाग भी लगभग इसके साथ दही प्रकाशित किया जाएगा । शेष भाग के संपादन तथा लेखन कार्य में विद्वान् मन योगपू्वफ लगे हुए हैं श्रौर यदि उन्होंनें श्राशवासन का पालन किया तो निश्चयद्दी श्रतिशीघ्र इतिहास के सभी खंड प्रकाशित दो जायेंगे । यद्द योजना श्रत्यंत विशाल है तथा श्रतिव्यस्त बहुसंख्यक निष्णात विद्वानों के सहयोग पर श्राधारित है । यह प्रतन्तता का विषय है कि इन विद्वानों का योग सभा को प्रास तो है ही श्रन्यात्य विद्वान भी श्रपने शनुभव का लाभ हमें उठाने दे रहे हैं। दम श्रपने भूतपूर्व संयोजकों - डा+ पांडेय श्ौर डा० शर्मा--घके भी श्रत्यंत श्राभारी हैं जिन्होंने इस योजना को गति प्रदान की । इम भारत सरकार तथा शन्यान्य सरकारों के भी कृतश हैं जिन्होंने वित्त से हमारी सहायता की । इस योजना के साथ ही सभा के संरक्षक स्व ० डा० राजेंद्र प्रसाद श्रौर उसके मूतपूर्व समापति स्त्र० डा० श्रमरनाथ भा तथा स्व० पंडित गोविंद बललम पंत की स्मृति ज्ञाग उठती है । जीवन में काल जिस माँति इस योजना को उन्होंने चेतना ब््ौर गति दी श्रौर आज उनकी स्मृति प्रेरणा दे रही है जिससे त्रिश्वास है कि यह योजना शीघ्र ही पूरी हो सकेगी । तब तक प्रकाशित इतिहास के खंडों को न्रुटियों के बावजूद भी हिंदी जगत् का श्रादर मिला है । मुझे विश्वास है कि श्रागे के खंडों में श्रौर भी परिष्कार ब्ौर सुधार होगा तथा श्रपनी उपयोगिता एवं विशेष गुणुघम के कारणु वे समादत होंगे ।
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