सरल गीता | Saral Geeta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(०७) चात जो हम देखते हैं घद यही है कि भरने वलका गये भोर लोभ येतरह्द पढ़ा हुआ था। चेदि-देशके राज्ञा शिशुपाठ आदि भर भी अनेक गर्वि्ट राजा उस समय मौजूद थे । प्रागजोतिपका राजा जैसा बलवान था चैसा ही विलासी थोर दुराचारी भी था । उसने अपने राज्यमें ऐसा दुराचार शारस्म किया था कि अपने भोग चिलासके लिये उसने सोलह इजार एक सो सुन्दरी कुमार्यां चुनकर अपने रड्रमदलमें ला रखी थीं । दूसरी वात यही चिला- सिता भर भनाचार है। तीसरी वात--कंसके दुर्वारमें यह अत्याचार दिखायी देता हे कि उसने अपने पिता परम नोतिमान महाराज उम्रसेनको कद कर राजगद्दी पायों थो भर प्रजापर चह मसहा अत्याचार कर रहा था चौथी वात -पाश्ाल देशमें कोरव-पांडवोंका भयंकर अन्तःकलह है जहां इस अन्त/कलहफे साथ साथ चिलासिता दुराचार भप्रानुपी भव्याचार चथा सत्यानासी गवेकी मूर्तियां भी मौजूद थीं । इस वर्णनसे यह स्पष्ट है कि उप्त समय परन स्त्रतंत्र हिंत्दू राज्योंकी ऐटिंक उन्नति तो पराकाप्ाकों पहुंची हुई थी पर इन राजपुरुपोंका चरित्र भ्रष्ट हो चुका था। जब्र राजा तथा राजपुत्रोंका दी चरित्र भ्रष्ट हो तर प्रज्ञा कददांसे खुखी हो सकती है ? इसीलिये प्रज्ञाको दुःख था भौर प्रथ्वीकी लिये यह पाप्रका चोभ अल हो उठा था। सामाजिक आआचार-विचार न राजपुरुपोंके चरित्र श्रष्ट हो रहे थे पर ख़ियोंमें अभीतक धर्म बाकी था । डर्योधन मैसे पापी दुप्र और इर्प्याछिकी माता




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