खेल - खिलौने | Khel - Khilaune
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.48 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
राजेन्द्र यादव - Rajendra Yadav
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लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खेल-खिलौने और वहाँ लड़का जिद किये बैठा है कि शादी करूँगा तो इंसीसे कसूँगा--वापसे साफ कह दिया है। फोटो देखनेंके वाद यहाँ चुपचाप आकर स्कछ जाते हुए देख गया कही वस तभीसे जिद किये है । तभी तो ये सब आई थी देखने । माताजीने कहा कुछ चिस्तित स्वरमे । नीरजाके रोनेकी वात सुनकर वातोका उत्साह मन्द पड गया। तभी वाहरसे जीजीका बच्चा फिर उनके पास आ गया--सबके मुँहकी ओर देखकर धीरे-धीरे वोला-- जीजी वह बच्चा लेंगे । उसकी निगाह मेटलपीसपर रखी उस बुद्ध-मूतिपर थी । बात क्यों नहीं करने देता सब बच्चे बाहर खेल रहे हैं और तू यहाँ जमा हूं । इस वार उसे माताजीने फटकारा वह सहमकर चुपचाप खड़ा हो गया गया नहीं । जीजी उसके सिरपर सान्त्वनासे हाथ फेरने लगी | जिद नहीं करते मुन्नी । अब नीरजा वेचारी रोये नहीं तो क्या हो । मेने नीरजाका पक्ष रेकर माताजीसे कहा-- आप तो इस वुरी तरह पीछे पड जाती हूं कि ऐसा गुस्सा आता है कि फौरन लड पड़े । नये आदमियोंके सामने अधिक हुठ भी तो नहीं कर सकती और आप हे कि उन्हीके सामने पीछे पड गई यह दिखाना वह दिखाना । सच सुधीन्द्र भाई माताजीने नीरजाकी कोई चीज ऐसी नहीं छोडी जो दिखा न दी हो उन्हें। क्लासमे कराये गये कटाई-सिलाईके कामोंसे छेकर मेजपोण स्वेटर--सब । यहाँतक कि हाईजीनमे बनाये गये बरीरके विभिन्न अगोके डायग्राम्स तक। अब उन्हीके सामने जिद करने लगी कि गाना सुना गाना सुना मुक्ते सच बडा गुस्सा आया । सुनाया उसने ? सुधीन्द्र भाईने पूछा । दोनो घुटनोपर अपनी कुहनी रखे वे घीरे-थीरे अपनी माथेकी सलवटे टटोल रहे थे--वडे चिन्तित उदास-से । सुनाना पडा सुनाये नही तो क्या करे। वहाँ पीछे पडनेवाले हो प्
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