उमंग | Umang

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Umang by मेघराज 'मुकुल' - Megharaj 'Mukul'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) हो रही है अतः यह कविता-सग्रह भी इसी दृष्टि को लेकर आपके सामने आ रहा है। ः भूमिका की औपचारिक बातें पूर्ण करने से पुर्व यदि से अपने कविता- पाठ के सबध में भी थोडा कहदू तो वह अनुचित नहीं होगा । और वह इसलिये कि कविता और सगीत मेरे जन्म के सायी रहे हे । जब में आठ नौ बषे का ही था मेरे पुज्य पिताजी रामायण का पाठ करते-फरते आत्म. विभोर हो जाया करते थे और उनकी सुमधुर स्वर-लहरी में आस-पास बेढठे हम सभी इतने तन्मय हो जाते थे कि उस आनंद को आज भी दाब्दो में व्यक्त करने सें असमर्थ हूँ । मेरे कविता-पाठ में उनके रामायण-पाठ की अमोट छाया है । प्रत्येक रस की अर्थाभिव्यक्ति के लिये कितने परिमाण का स्वर और कसी भाव-भागिमा की आावइयकता होती हैं और भादि से लेकर अत में चरम तक पहुँचने के लिये च्िस प्रकार का कौशल प्रयोजनीय हैं यह आज भी उनसे सीखा जा सकता है । वास्तव में कविता लिखना यदि सहान कला है तो उसको सवार कर उसका पाठ करना भी सहज नहीं है वहू भी अपने भाप में एक स्वतन्न कला है जो बड़े-बड़े सुर-साघको के सुरीले कंठ भी शैली से अनभिन्न होने के कारण वह प्रभाव पैदा करने में असमर्थ रहते है । कम से कम मेरा अनुभव तो इस बात का साक्षी है कि हृदय के शुद्ध रक्त से लिखी हुई वीर-रस को एक कविता को पूरे मनोधोग से पढ़ लेने के पदचात्‌ एडी से लेकर-चोटी तक का पसीना बाहर चहकर समस्त प्राणो को स्फूतिमय कर देता है और जिस सहज भाव तत्लीनता और रोमाच को अवस्था में जन-समुद्र उसे हुदयगस करता है उसे देखकर तो जन-कवि- सम्मेलनो में कोरी विद्वत्ता का प्रदर्शन और काव्य-कलाबाजी निरा पाप प्रतीत होते हैं । साधारण जनता में पठित कविता को काव्य की संकीर्ण और कुठित कसौटी पर कसना कवि के साथ भौर भी अन्याय हैं । वहाँ एक-दो घिद्वानो के साथ रस भर भावों के आदान-प्रदान की बात नहीं होती बल्कि हजारो और लाखों तक सोधे पहुंचने का प्रइन होता है । ऐसे जन-सस्मेलनों में साधारण से साधारण भाषा में बड़ी से बडी और बहुमूल्य अनुभूति को जनमन में उतारना ही कवि का लक्ष्य होना चाहिए । साटिनेनगों सिज़रेस्को पका घाएहाइ०-(285616500) ने लोकप्रिय कविता के विषय में कहा भी है--९०एपीवा फु०७घए 15 पा कलींटटपाणा ० फ़ाणाला एम इणाई (.णीड्ट्प हाणाणा लेकिन हसारे यहाँ ऐसा नहीं है।




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