निर्निमेष | Nirnimesh

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Nirnimesh by मेघराज 'मुकुल' - Megharaj 'Mukul'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन हुआ वृन्दावन सावित्री परमार दूर वशी बज उठी मन हुआ व-दावन। सलतरछाही-सी भार सदली उलट गई अधियारी पर्तें सौप चपई सूरज किरणे बाध गया दिनभर णते पाती धी पुल गई धूप का छूवर चदन । खेता खलिहाना मे छलका मौसम का वासती झरना मधुमासी याहा म महका सरसा का श्गारित सपना सूरजमुखी क्षणा की यादें रचा गड दरपने। छ এ




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