दर्ज़ी दर्पण | Darji Darpan

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Darji Darpan by मा. ईश्वर दत्त - Ma. Ishvar Datt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे दर्जी-दपण बा कप का नव न ही लक भा थक के थक न के अ कक ट १ है पदला श्रघ्याय हा कक हराकर अप. शा हथअिरान्र (२) बेपरवाही (0.5 छा .छ 5577 5 55) हम सब लोग प्राय काम को पूरे ध्यान से न करने के कारण से छाथवा किसी -सित्र आाहक अथवा किसी दूसरे झादमी के काम के समय झाकर दखल देने ( पश6०१7/पफृषि00 । से गलतियाँ कर चेठते हैं । कटर ग्राहक से वार्तालाप करते समय उस की चताई हुई बात को भली प्रकार न समक कर अथवा नाप लेने में गलती करके वस्त्र का चित्र बनाते छोर कपड़े में से वस्त्र काटते समय प्राय गलती कर बेठते है। इस के इलावा कई श्राहक इतने वदमी होते हैं कि व्यर्थ श्मीर छोटी २ बातों के वास्ते इतना तंग करते है जिस से कटर बिचारा घबरा कर उस की बातों को फ़ज़ल श्रौर सिर दर्दी का कारण समझ कर उन की ओर ध्यान तक नहीं देता चल्कि केवल मुँह से हां जी नद्दी जी इत्यादि कहता रहता है जिससे प्राहक समभ सके कि वह उस की चातें ध्यान पूचेक सुन रहा है । इस का परिणाम यह होता है कि श्राहक की कुछ जरूरी बाते मी रह जाती हैं । ऐसे नुक्स प्रायः पड़ते ही रहते हैं जिन से आरादक नाराज़ दो जाते हैं । इस वास्ते यदि आप ऊपर लिखी चातें ध्यान पृवेक करेगे तो छाप को इतना कष्ट न होगा छर्थाद शुरू ९ में जरा परिश्रम क्रोर ध्यान से काम करना सब प्रकार फे कष्ट दूर करता है । नापों का ध्यान पूवेक न लेना यवा उनऊो किसी खास




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