भारत - सावित्री खण्ड - २ | Bharat - Savitri Khand- 2

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Bharat - Savitri Khand- 2 by श्री वासुदेवशरण अग्रवाल - Shri Vasudevsharan Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्‌ सुरापान स्त्रियों के साथ खुलकर नाचना आयें नियमो के सदूजा शौच का अभाव ये कुछ ऐसी वाते थी जिनके विरुद्ध भारतीयों में अत्यधिक रोप॑ उत्पन्न हुआ और वह उवाल दल्य-कुत्सन नाम के इस प्रकरण में वचा रह गया है। यूनानियों का ऐसा कटखना वर्णन किसी भी और देश के साहित्य में नहीं पाया जाता । हमारा अनुमान है कि इसकी रचना पुष्यमित्र शुग (लगभग १८५ ई० पू०-१५० ई० पू०) के काल में हुई । पुष्यमित्र और उनके उत्तराधिकारी ब्राह्मण वणज थे और यहाँ यह बारवार कहां गया है कि कोई ब्राह्मण म्रदेग से घूमकर आया और उसने यह सूचना दी । इतना ही नही इस प्रकार का प्रचार उस युग की आवश्यकता थी । इस वर्णन के नव (९) पैवन्द है जिन्हे एक साथ सी दिया गया है। पर वे थेकलियाँ आज भी स्पष्ट दिखलाई पड़ती हूँ । ज्ञात होता है कि इन वर्णनो का वहुत कुछ उद्देइ्य मद्रदेश की जनता के मन को यूनानियों के विरुद्ध फेरना था । अतएव मानों इस प्रकार के लोकगीत जान-बूझकर जनता मे प्रचारित किए गये । मूल वर्णनो मे इन्हें कई जगह गाथा केहा गया है । अनुमान होता है कि जब लोग महाभारत की कथा सुनते थे तो उसी के साथ मद्रक यवनो का यह प्रसंग भी सुनाया जाता था और इसका गहरा रंग उनके मन पर पडता था जिससे समस्त मध्यदेश मे यवनो से प्रतिश्योध का ववण्डर उठ खडा हुआ जौर सचमुच उस काली आँघी के प्रकोप से मद्रक तिनके की तरह उड गए । पतञ्जलि ने महाभाप्य में एक उदाहरण दिया है दुर्यवन उसका अर्थ है यवनो का घोर विनाण । वह मद्रक यवनो पर आई हुई इसी प्रकार की विपत्ति का सूचक हे। पुष्यमित्र और उसके सुयोग्य पौत्र वसुमित्र के नेतृत्व में मध्यदेश से उठा हुआ रेला मद्रक यवनों को वहा ले गया । भारत सावित्री के प्रथम खड के पहले २८ लेख साप्ताहिक हिन्द्स्तान क॑ द्वारा प्रचारित हुए थे और वाद में विराट पे के अत तक की सामग्री जोइकर उन्हें पुस्तक रुप दिया गया । उससे जनता को ग्रथ के विपय में सत्यवघिक रुचि उत्पन्न हो गई थी । उसी प्रकार गीता के अठारह अध्यायों की व्यार्या नीता-नवनीत सीर्पक से साप्ताहिक हिन्दुस्तान मे प्रकाधित




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