गीता - हृदय | Geeta - Hridaya

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भवानी प्रसाद - Bhawani Prasad

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श्री साने गुरु जी - Sri Sane Guru Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा अध्याय ११ कहेंगा में खादी का काम हाथ मे लूँसा कोई कहेगा में राष्ट्र-भाषा का प्रचार करूंगा कोइ कहा चर्मालय निर्माण करूँगा कोई कहेगा मैं श स्रीय गोरक्षण का काये करूंगा कोई साक्षरता प्रचारक होगा तो कोई मघुसंवधन विद्या-विशारद बनेगा कोई कहेगा मै किसान संगठन करूँगा कोई कहेगा में मजदूरों में जाता हूँ कोई कहेगा सै विद्रोह करता हूँ कोई कहेगा मै फाँसी पर लटकरी कोई कहेगा मै जेल जाउँगा । सभी यथाशक्ति अपनी बृत्ति के अनुसार स्वतंत्रता के काये में सद्द करेंगे । को स्वघर्म कहते हैं । स्वघस का थे हिन्दू धर्म इंसाइ-घ्मे ऐसा नहीं है । स्वघम याने हमारा चणे-घ्म । चण याने रंग। संसार मे दम थ्राए हैं तो कौनसा रंग लेकर ? हमारे मन और बुद्धि का कौनसा रंग है ? हमारा झुकाव किस झोर है? उसे देखकर उसके अनुरूप ही सेना-कम हम हाथ में लें। उसी के लिए जीवित रहे और उसी के लिए मरें । स्वर्घर्मे निधन श्रेय. परधर्सो भयावह उक्त चरण का ऐसा ही अथ है। प्राचीनकाल में ऐसा था कि जो पिता का चर्ण चही पुत्र का इसलिए कि शैशव में बालक जो घर से देखता था जिस वातावरण से प्रभावित होता था उसे ही श्रहण करता था । परन्तु इस ज़माने से हम चहुत आगे झाचुके हैं । शिक्षण पद्धतियो के नेक प्रकार होगए है। एक ही साता-पिता के भिन्न गुण घम की सन्तानें होती हैं.। एक ही सा सुमाव सबनिप् नहीं होता। कोई चित्रकार होता है--किसी को फूल-पत्ती खेती-किसानी का शौक्क दोता है । इसलिए चृत्ति के अनुरूप ही स्वघमं चुनो और उसी के झाचरण करने में यद्द शरीर भोक दो । सवन्र भरित झात्मस्वरूप की गति में स्वघर्माचरण करने के लिए यह दे प्राप्त हुई है । इस




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