रहीम - रत्नावली | Raheem - Ratnavali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.39 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मयाशंकर याज्ञिक - Maya Shankar Yagnik
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९ ) खानख्राना का समय विशेष कर छड़ाइयों में ही बीताने अकबर के समय में गुजरात सिघ और बीजापुर की ढड़ाइयों को -जीत कर खानखाना ने बड़ा ही पराक्रम दिखाया था । श्रतिछठा और राज्य सम्मान भी प्राप्त किये थे। जहँगीर के समय में बह बात नददीं रददी । इन्होंने भी कई बार बेढब चाछ चढछी। इनके चार पुत्र थे । वे इनके जीतेजी ही मर गये थे । राजनेतिक इलचढों में भाग िये बिना खानखाना को दूसरी गति नहीं थी और इसी कारण जागीर पद आदि प्राप्त होने पर भी इनका जीवन सुखमय नहीं रहा । खानखाना का सकबरा दिल्ली में है। परन्तु उच्लकी भमावस्था देख कर चित्त को कद होता है कि रहीम जैसे अनेक शुण- सम्पन्न दानी की क्रन्न के पत्थर तक लोग निकाठ कर छे गये । काल की गति विचित्र है इनका विस्ठृत जीवन-चरित्र मुन्शी देवीप्रसाद कुत्त खान- खाना नामा में दिया हुआ है। हिन्दी में इसके सदश दूसरी ऐतिहासिक जीवनी नहीं है । खानखाना सें अनेक गुण थे। जो बद्दादुरी और वीरता इन्होंने छोटी अवस्था से ही रणक्षेत्र में दिखिढाई उससे अकबर भी चकित हो गया था। इतनी थोड़ी अवस्था सें ऐसा युद्ध- कौचछ दिखाया कि जब कभी संकट आकर पड़ा तो अकबर ले इन्हीं पर भरोसा किया। अपने शुर्णों के कारण इनको यदा और सम्मान दोनों ही प्राप्त हुए । घन भी इनके पास्र अटूट था । देश में कई जगह इनकी जागीरें थी । राजसी ठाठ से रहना इनको पसंद था और वैसे ही रहते भी थे । मददल उद्यान और हम्माम इन्होंने जगह-जगह बनचाये थे । जैसे घनी थे वैसे ही दानी भी थे । उदारता इतनी बढ़ी हुई थी कि खानखाना एक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...