रहीम - रत्नावली | Raheem - Ratnavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ ) खानख्राना का समय विशेष कर छड़ाइयों में ही बीताने अकबर के समय में गुजरात सिघ और बीजापुर की ढड़ाइयों को -जीत कर खानखाना ने बड़ा ही पराक्रम दिखाया था । श्रतिछठा और राज्य सम्मान भी प्राप्त किये थे। जहँगीर के समय में बह बात नददीं रददी । इन्होंने भी कई बार बेढब चाछ चढछी। इनके चार पुत्र थे । वे इनके जीतेजी ही मर गये थे । राजनेतिक इलचढों में भाग िये बिना खानखाना को दूसरी गति नहीं थी और इसी कारण जागीर पद आदि प्राप्त होने पर भी इनका जीवन सुखमय नहीं रहा । खानखाना का सकबरा दिल्ली में है। परन्तु उच्लकी भमावस्था देख कर चित्त को कद होता है कि रहीम जैसे अनेक शुण- सम्पन्न दानी की क्रन्न के पत्थर तक लोग निकाठ कर छे गये । काल की गति विचित्र है इनका विस्ठृत जीवन-चरित्र मुन्शी देवीप्रसाद कुत्त खान- खाना नामा में दिया हुआ है। हिन्दी में इसके सदश दूसरी ऐतिहासिक जीवनी नहीं है । खानखाना सें अनेक गुण थे। जो बद्दादुरी और वीरता इन्होंने छोटी अवस्था से ही रणक्षेत्र में दिखिढाई उससे अकबर भी चकित हो गया था। इतनी थोड़ी अवस्था सें ऐसा युद्ध- कौचछ दिखाया कि जब कभी संकट आकर पड़ा तो अकबर ले इन्हीं पर भरोसा किया। अपने शुर्णों के कारण इनको यदा और सम्मान दोनों ही प्राप्त हुए । घन भी इनके पास्र अटूट था । देश में कई जगह इनकी जागीरें थी । राजसी ठाठ से रहना इनको पसंद था और वैसे ही रहते भी थे । मददल उद्यान और हम्माम इन्होंने जगह-जगह बनचाये थे । जैसे घनी थे वैसे ही दानी भी थे । उदारता इतनी बढ़ी हुई थी कि खानखाना एक




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