आदर्श हिन्दू भाग - ३ | Aadarsh Hindu Part 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७. ) उनके चरतों में पते चर्मचस्षुझ्यों के साथ साथ ह्रदय के मेत्रों को गड़ावे हुए पंडित प्रियानाथ जी श्रादि गाने लगे देश सोरठ--हरि है बढ़ी बेर को ठाढ़ा ॥ टेक ॥ जेसे श्र पतित तुम तारे लिन हीं में लिख काढ़ो ॥ जुग जुग विरद यही चल श्राया टेर करत हा तासे । मरियत लाज पंच पतितन में हैँ। घट कहें कहाँ से ? ॥ बी श्रब हार मान कर बैठा के कर ब्िर्द सही । सुर पतित जा झूठ कह्त है खा खाल घही ॥ ? ॥। घनाश्री---माथ सोहि अब की बेर छबारों | टेक | तुम नाथन के नाथ स्वामी दाता नाम तिहारों । कर्महीन जन्म को अंधा मौतें कौन नकारों ॥ तीन नाक के तुम प्रतिपालक मैं तो दास तिहारों । तारी जात कुजात प्रमभूजी मेपर किरपा घारों ॥ पतितन में एक नायक कह्तिएं नीवन में सरदारों | कारि पापों इक पार्सग मेरे शजामीत को न विचाशा ॥। नाख्या घर्म नाम सुन मेरो नरक दिया हठ तारों । मोाकों ठौर नहीं भव कोऊ अपने बिरद संभारों ॥ तुद्र पतित्त तुम तारे रमापति श्रब न करो जिय गारी | सूरदास साँचे तब माने जो द्ोय मम निस्ताशि ॥ २ ॥ शरण आए की लाज उर धरिए || टेक || सच्यों नहीं धर्म शील शुच्ि तप व्रत कद्यू कहा मुख ले बिने तुम्हें करिए ॥।




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