पागल | Pagal

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Pagal by खलील जिब्रान - Khalil Jibranशिवनाथ - Shivnath

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खलील जिब्रान - Khalil Jibran

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शिवनाथ - Shivnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हि २ हे श्र प्राचीन काल मैं जब मेरे होठ पहली बार हिले तो मैंने पवित्र पर्चत पर चढ़कर ईश्वर से कहा-- स्वामिन्‌ मैं तेस दास हूँ । तेरी गुप्त इच्छा मेरे लिए क्लानूत है । मैं सदैव तेरी श्राज्ञ का पालन करू गा । लेकिन ईश्वर ने मुे कोई जवाब न दिया और वह एक ज़बरदस्त तूफान की तरह तेज़ी से गुज्ञर गया । एक हज़ार बर्प बाद मैं फिर उस पतित्र पहाड़ पर चढ़ा झौर इंश्वर से प्रार्थना की परम पिता मैं तेरी खष्टि हूं तने सुर्के मिट्टी से--साधारण मिट्टी से पैदा किया है झौर मेरे पाल जो कुछ है सब तेरी देन है । गे किंतु परमेश्वर ने फिर भी कोई उत्तर न दिया श्र नह इज्ार-हज़ार सबेग परों (पश्षियों) की तरह सन से मिंकल गया । इज़ार बर्ष बाद मैं फिर उस पत्रिन्न पहाड़ पर चढ़ा शऔर ईश्वर को समबोधन करके कहदा-- है प्रभु मैं तेरी सम्तान हूँ. । प्रेम श्र दथा पूर्वक तूने सुमे उत्पन्न किया है । शोर तेरी भक्ति तथा प्रेम से ही मैं तेरे साप्नाज्य का झधिकारी बनगा । लेकिन इंश्वर ने कोई जबाब न दिया श्र एक ऐसे कुहरें की तरह जो सुदूर पहाड़ों पर छाया रहता है निकल गया । एक हज़ार बर् बाद मैं फिर उस पत्रिन्र पहाड़ पर खा झौर परमेश्वर को सम्बोधित करके कहां - 00/00/0000




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