पंजाब में हिंदी के प्रचार की ज़रूरत | Panjab Me Hindi Ki Jaroorat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ है ससमस्ते तब नक हिन्दी की यधार्ध उन्नति ने होगी । पक श्ौर बात भी विचार-येग्य है । बहुत से श्रादमी भुँड से तो हिन्दी के प्रेमी बनते हैं पर काई किताब या लेस्य लिखने के समय उससे मुँद छ़िपाते हैं । यदद दोष हिन्दी के बड़े चड़े भक्तों तक में पाया जाता है । जब हिन्दी के पक्षपाती ही ऐस्ता करेंगे तब श्रौरों से क्या श्राशा की जाय? ज़बानी बातों सेकद्दीं काम चलता है? पंजाब में है उदू का प्रचार । इससे उददू ही की पुस्तकों के गाहक झधिक हैं । जब लेखक साहित्य के मैदान में झाते हैं तब देश प्रेम तो हिन्दी की श्रोर घसीटता है झऔौर द्ब्य-घ्रेम उदू की छोर । इस दुविधा में मद्दामाया लगमी ही की जीत होनी है । फिर यह थी विचार होता है कि अपने सिद्धांत उदू में झधिक लोगों के पास पहुंचेंगे । इससे थे अपनी विचार-सुगन्थधि को तांबे के पात्र मेरखते हैं क्योंकि सोने का पात्र लोगों को पसंद नहीं । इससे बेचारी दिन्दी के गले में छुरी फिगती है । ज्ञाला जाज्पतराय जी ने उदू में कई महापुरुषों के जीवन-चरित लिखे हैं । श्रौर छाय्ये-समाज़- कलिज के एक महाशय ने झानन्दमढ का बंगाली से उर्दू में झनवाद किया है । यदि इसी तरह हमारे दाथ और कलम उड़ की सेवा में तत्पर रहे तो पंजाब में हिन्दी का प्रधार होना दुम्साध्य होगा । इम को दूरदर्शी होना चाहिए । और हर प्रयल्न से सब बिज्न-बाधाओओं को उल्लंघन करके दिल्‍्दी लिखना-पढ़ना सीखना चाहिए दिन्दी बोलना चाहिए श्र न्वी ही में पुस्तक-रखना करना चाहिए । पसा न करना अपनी ज्ञाति को दुर्बे्र करना है श्रप्रते हाथ से अपनी जड़े खोदना है हिस्दुत्व पर भस्वा लगना हैं (सरस्वती)




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