यात्री | Yatri

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खलील जिब्रान - Khalil Jibran

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माईदयाल जैन - Maidayal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ावारं में उसे चौराहे पर मिला । वह एक श्रपरिचित व्यक्ति था जिसके हाथ में लाठी शरीर पर एक चादर श्रौर चेहरे पर एक झ्रथाह दर्द का श्रश्ेय परदा था । हमारे इस मिलन में गरमी श्रौर प्रेम था । मेंने उससे कहा मेरे घर पधारिए भौर मेरा झातिध्य स्वीकार कीजिए । श्रौर वह मेरे साथ हो लिया । मेरी पत्नी श्रौर बच्चे हमें द्वार पर ही मिछ गए । वे सब उससे मिलकर बहुत प्रसन्न हुए श्रौर उसके श्राने पर फूले न समाए । फिर हम सब एक साथ भोजन के लिए बैठे । हम बहुत प्रसन्न थे आर वह भी खुश था किन्तु मौन । उसका मौन रहस्यपुर्ण था । भोजन के बाद हम शभ्राग के पास आ बेठे । और में उससे उसकी यात्राप्ों की बाबत पुछता रहा । इस रात श्रौर दूसरे दिन उसने हमें बहुत-सी कहानियां सुनाई । किन्तु यह जो कुछ में लिख रहा हूं यह उसके कट दिनों का अनुभव है । यद्यपि वह स्वयं श्रत्यस्त कृपालु तथा दयालु था परन्तु ये कहानियां ये तो उसके मा्गे की धूलि भर धीरज की कहानियां हैं । १३




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