कुशवाहा कान्त (मेरी दृष्टि में) | Kushawaha Kant (Meri Drishti Me)

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Kushawaha Kant (Meri Drishti Me) by केशर - Keshar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ स्वतः सिंदुध है । क्रे० ईद्वरदत्त जीवन भर ए० जी० गार्डनर की शैली पर कलम माँजते रहे और अन्त में एक दिन उन्हें सफलता भी मिली । स्वयं गार्डनर ने उन्हें साधुवाद दिया है। के० ईरवरदत्त इसे अपने जीवन की सबसे बड़ी सफलता मानते हैं । केदार भी इस पुस्तक को श्रदुधा के पुष्प या अभिनन्दन के रूप में नहीं-अपने जीवन की सबसे महत्‌ कृति मानें तो गछत न होगा । कान्त का व्यक्तित्व और उनका साहित्य दोनों का मेरे मिकट कुछ भी असर नहीं है पर यह कृति केशर के साथ-साथ उन्हें भी अमर बना देगी--इसमें कोई सन्देह नहीं । संस्मरण लिखने वाले लेखक इसे स्वीकार करेंगे कि शब्दजाल द्वारा किसी व्यक्ति का जीवन सही-सही उतार देना उतना सरल नहीं है जितना थरद्धा और अपनत्व के भाव में प्रकट कर देना । किसी व्यक्ति का संस्मरण लिखते समय लेखक अपने व्यवितत्य को तटस्थ नहीं रख पाता । केदार मे भी यही किया है पर अपने पूर्व जीवन तथा विचारों पर उसने पर्दा नहीं डाला है । यही उसकी सबसे बड़ी विशेषता है वर्ना हिन्दी में ऐसों की कमी नहीं है जो अपना प्रस्तिगान अपने शिष्यों से कराते हैं और स्वयं करते भी नहीं चूकते । एक ओर उसने जहाँ अपनी कम- जोरियों को छिपाया नहीं है वहीं उसने कान्त के जीवन के उस रहस्यमय भाग को भी ईमानदारी और साहस के साथ प्रकाशित किया हैं जो अब तक छिपा रहा । इस ढंग की कई पुस्तक बंगला में प्रकाशित हो चुकी हैं। अगर केशर बंगला भाषा का जानकार होता तो मैं निस्संकोच यह स्वीकार कर लेता कि प्रस्तुत पुस्तक पर बंगला के संस्मरण-साहित्य का प्रभाव पड़ा है। उसकी प्रतिभा के इस चमत्कारी प्रमाण पर मुझे गर्व है इसलिये कि केशार मेरा श्रपना है । ह सिदुघमिरि बाग बनारस दाह प५९ --बिश्वनाथ पुखजी




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