शहीद सरदार भगत सिंह १९३८ | Shahid Sardar Bhagat Singh 1938

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Shahid Sardar Bhagat Singh  1938 by रामदुलारे त्रिवेदी - Ramdulare Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) देश में इन्हीं दिनों एक और तूफान उठ खड़ा हुआ था, लाड कज़न की कृपा से बंगाल के दो टुकड़े किये गये थे, श्औौर विरोध स्वरूप देश में एक ज़ाबदस्त झान्दोलन लिड़ गया था, चारों ओर स्वदेशी की घूम मन्न गई । पंजाब पर इसका कोई प्रभाव न पढ़े यह ना मुमकिन था ! देशभक्तों' का यह दल खाना पीना भूल; दिन रात की चिन्ता न कर, जनता में अपने भाषणों द्वारा जीवन फूकरहा था। सरदार छिशनसिंह: सरदार अजीतसिंद सरदार सुवरनसिंद् लाला लाजपतराय ऑौर सूफी अम्वाप्रसाद इस अवसर से लाभ उठाकर जनता को स्वतंत्रता के लिये लड़ने को तय्यार करन में जुट पढ़े । लाला लाजपतराय, सूफी अम्बाप्रसाद आर सरदार अजीतर्सिह जी के व्याख्यान शाग बरसा रहे थे । फल स्वरूप पंजाब में जोश की एफ लहर दौड़ गई । वह उठ खड़ा टुआ । नोकरशाद्दी के लिये. चुप रहना असःभव था, उसने वार किया । 'झाघुनिक भारत के इतिहास में सन १६०७ में १८१८ का तीसरा रेगुलेशन पहले पहल काम में लाया गया । उसके बाद तो इस काने क़ानून ने ज्रिटिश साम्राज्यशाह्दी का बहुत ही उपकार किया | बंगाल श्र पंजाब दोनों प्रांतों पर उन दिनों इस क़ानून का कस कर वार किया गया ! लाला लाजपतराय और सरदार 'ाजीतसिंद इस के शिकार बने । मॉडले के क़रिले बर्मा में नजरबन्द करके चन्द महीनों ब्रिटिश सरकार ने इनकी मेहमान- दारी की । इसशओोर सरदार किशनसिंह जी को नेपाल सरकार से




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