विज्ञान पत्रिका | Vigyan Patrika

Vigyan Patrika by डॉ शिवगोपाल मिश्र - Dr. Shiv Gopal Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लिखना आवश्यक था। पर अब वह सब बन्द हो गया है। दवाओं का एजेन्ट आता है और कहता है केवल एक मिनट चाहिए आप बहुत व्यस्त हैं चाहे आप खाली ही क्यों न बैठे हों । वह जल्दी जल्दी रटे रटाये बिल्कुल तोते की तरह बोलता है और आपसे उम्मीद करता है कि आप उसकी दवा फौरन समझ लें । कुछ कहने व समझने के लिए न तो उसके पास समय है और न वह चाहता ही है। उसका लक्ष्य है कि आप उसी समय से उसकी दवा लिखना शुरू कर दें मरीज जाये भाड़ में। उसकी कम्पनी को तो फायदा होना चाहिए और उसके लिए अपना रहे हैं हर तरह के हथकंडे | यहीं पर हम दवा की कीमत पर भी चर्चा कर लें । अभी हाल ही में इस देश में जोड़ों के दर्द के लिए दो दवाएँ आई हैं ग्लूकोसामीन और कान्ड्रायटिन सल्फेट | ये दवाएँ विदेशों से मँगाई जाती हैं और वह भी एक सरकारी संस्था के माध्यम से | वहीं से सभी कम्पनियाँ इन दवाओं को खरीदती हैं । इन आयातित दवाओं के लिए 500 मिलीग्राम प्रति कैप्सूल के हिसाब से कर देना. ही कम्पनी का कार्य है तथा फिर उसे बेच देना | परन्तु इसकी खुदरा कीमत 5 से 9 रुपया प्रति कैप्सूल है जिसे दवाविक्रेता मैक्सिमम रिटेल प्राइस या एम.आर. पी कहते हैं । यह दवा प्रति दिन वर्षों तक खानी पड़ती है| अब आप ही सोचिए जो कम्पनी केवल 4 रुपये प्रति कैप्सूल बेच रही है वह घाटे का व्यापार कर रही है । आखिर में उसे तो कुछ न कुछ लाभ होगा ही- फिर होलसेल डिस्ट्रीब्यूटर या रिटेलर शाप इनको भी तो कुछ मिलेगा ही । एक बात और इस कान्ड्रायटिन सल्फेट (टाणाठाघाए 3ण]ृाक्रं८ और ग्लेकेसामिन (510005870716 को अमेरिकी फेडरल ड्रग एजेंसी ने दवा ही नहीं माना है। वहाँ यह दवाखाने से लेकर साधारण दुकानों पर मिलेगी क्योंकि कम्पनियाँ इसे आहार पूरक करके बेच रही हैं | पर अधिकांश विदेशी अपने भोजन को संतुलित मानते हैं । और कुछ ही लोग आहारपूरक लेते हैं । यहाँ यह भी स्पष्ट कर दें कि इन भोज्य पदार्थ या दवाओं को मछलियों और केकड़ों की उपास्थि से निकाला जाता है। क्योंकि इनका कोई उपयोग नहीं है इसलिए इनमें से यह पदार्थ निकाल कर भारत जैसे गरीब देशों को भेज दिए जाते हैं । अपने प्रधानमंत्री जी के घुटने में दर्द था उन्हें भी यह सब खूब खिलाई गई | पर नतीजा तो वही हुआ जो होना था- दोनों घुटने बदलवाने पड़े | यहाँ पर यह भी स्पष्ट कर दें कि ब्रिटेन की गायों को मैडकाउ डिजीज भी शायद इसलिए ही हुआ था क्योंकि शाकाहारी गायों को मांसाहारी भोजन दिए गए थे। आप ही सोचिए कि आप सैकड़ों रुपया खर्च कर किसी किस्म का रोग- जिसका अभी तक इलाज नहीं है पाना चाहेंगे ? शायद नहीं ? पर आप ऐसा कर रहे हैं | यह कैसी विडम्बना है कि जिनको खाने को नहीं वह टानिक पी रहा है | प्रोटीन अब दाल चना या दूध में न होकर प्रोटीनेक्स चाकलेट बूस्ट हार्लिक्स थ्रेप्टिन में स्थानांतरित हो गई है ? आप जरा सोचें ? 1 घंटा में 40 लाख टेनिस की विश्वस्तरीय प्रतियोगिता जीतने के लिए बोरिस बेकर केला खाता है पर अपने देश में कपिल देव स्वास्थ्य के लिए बूस्ट खाने की सलाह देता है। कौन सही है ? आप रोज खाना खाते हैं लेकिन आपने कभी सोचा है कि आपका भोजन आपके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है ? कुछ लोग सोचते हैं कि अधिक मंहगी वस्तु ही ज्यादा लाभकारी होगी या फिर टी.वी. पर विज्ञापन देखा अखबार में कुछ पढ़ या फिर रेडियो पर कुछ सुना और दूसरे दिन वही वस्तु बाजार से खरीद कर ले आये और स्वयं व परिवार वालों को खिलाने लगे | टी.वी. पर बूस्ट का विज्ञापन देखा जाने लगा और अपने लाडले को महान खिलाड़ी बनाने का सपना देखने वाला बाप उसे खिलाने लगा | उसने यह जानने की कोशिश भी नहीं कि उसमें क्या क्या है तथा वह किस मूल्य पर उसे पा रहा है । इसी प्रकार चिकित्सक लोग भी अपने नुस्खे में एक दो या तीन टानिक अवश्य लिख देते हैं। शायद आप मानने के लिए तैयार न हों कि प्रतिवर्ष इस देश में हम 1900 करोड़ रुपये की टानिक वाली दवाइयाँ न केवल अपने पेशाब से निकाल विज्ञान/मई 2003/14.




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