हमारे अमर नायक | Hamare Amar Nayak

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Hamare Amar Nayak by प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) इसलिए उन्होंने बड़े श्राश्रय से कहा--मेरी विरदद-व्यथा के ताप को दूर करनेवाला सज्ञीवनी के समान यह स्पर्श तो स्नेद-भरी सीता का जान पड़ता है । सीता ने इतना सुनते ही घबड़ाकर श्रपना दाथ छुड़ा लिया । राम अब फिर व्याकुल होकर पुकारने लगे--दा प्यारी जानकी वठुम कद दो ? सीता की दूसरी सखी वासंती ने श्राकर राम से इसी समय कहा-- जिस द्ाथी के बच्चे को मरी प्यारी सीता ने पाला था वद्द इतना बलवान निकला कि मद्दाराज उसने एक जजड्ली हाथी को मारकर भगा दिया । यद्द सुनकर सीता को अपने दोनों पुत्रों की याद श्रा गई । इन पुत्रों का जन्म भी बारदद वप पहले हुश्रा था । जन्म के पश्चात्‌ वाल्मीकि मुनि ने उन्हें राजकुमारों के योग्य शिक्षा देने के लिये श्पने श्राश्रम में रख लिया । सीताजी इन बारद्द वर्पों से उन्हें नहीं देख सकी थीं | ऊपर जिस द्वाथी के बच्चे की बात हुईं है उसे भी सीताजी ने ्रपने पुत्रों के जन्म के समय दी पाला था । राज जब उन्होंने द्वाथी के बच्चें के बड़े होने की बात सुनी तो उन्हें ध्यान हो श्राया कि उनके पुत्र भी इतने ही बड़े दो गये होंगे | पुत्रों की याद आने पर श्रतिशय स्नेह के कारण सीताजी के स्तनों से दूध बहने लगा । परन्तु उनकी यह दशा राम श्रौर वासंती दोनों पर न प्रकट हुई । कारण यह था कि बर के प्रभाव से सीता श्रौर तमसा दोनों दी श्रदश्य थीं । बासन्ती सीता-निर्वासन के कारण राम से कुछ लुब्ध सी थी । उसने पूछा--मद्दाराज श्राप इतने कठोर कंसे होगये ? तू छृदय का छृदय हे मेरे प्राणों की प्राण है जीवन की ज्योति है । --श्रादि मीठी-मीठी बाते बनाकर जिस भोली भाली जानकी को भरमाया था दा उसी को केसे ।




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