आदर्श हिन्दू दूसरा भाग | Adarsh Hindu Dushra Bhag

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Manoranjan Pustakmala  by बाबू श्यामसुंदरदास - Babu Shyamsundar Das

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मेहता लज्जाराम शर्मा - Mehata Lajja Ram Sharma

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श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) टेले के टोल ने श्रा इलचल मचाई । समुद्र की हिलोरें तूफान के समय जेसे भरा श्राकर किनारे से टकराती हैं छत्ते की बरें जेसे उड़ उड़कर झादमी पर टूट पड़ती हैं अथवा मारवाड़ की रेत जेसे टीले के टीले उड़ उड़कर शझ्रादमी पर गिरती श्रौर ढाँक लेती है उसी तरह इनको घेरा । किंतु लहरें जेसे किनारे से ले जाकर झादमी को फिर भी किनारे पर ही ला डालती हैं रेत भी जैसे उड़कर झ्राती है वैसे दवा के भोंकि से उड़कर चली भी जाती हे परंतु छत्ते की बरें एक बार ्ादमी को घेरने पर भी नहीं छोाड़तीं स्थल में नद्दीं छोड़ती श्रौर जल में नहीं छोड़तीं यदि उनसे बचने के लिये पानी में गेतता लगाया ता क्या हुश्ना वे जानती हैं कि श्रभी ऊपर सिर निकलेगा । बस इस कारण वहाँ की वद्दों दी मंडराती रददती हैं। सिर निकालते ही माथे में डंक मार मारकर. काटने लगती हैं। बस यही दशा इन लोगों की हुई । मथुरा की घटना यौद करके प्रयाग का दृश्य देखकर ये सारे भागकर श्रपनी जान बचाने के लिये नाव पर चढ़े । कमर कमर पानी तक किनारे किनारे चलकर अआधी मील तक उन लोगों ने इनका पीछा किया श्रोर जब इन्होंने श्रपनी जान बचाने के लिये उनको कुछ भी न दिया तब वे गालियाँ देते लौट गए | पहले इनकी यह इच्छा हुई थी कि भोला को इस काम पर नियत कर चलें परंतु उस बिचारे के कपड़े बचने कठिन




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