आचार्य क्षेमेन्द्र | Aacharya kshemendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हु वान्‌ बुद्ध की प्रशंसा की और दशावतार चरित में सबसे पहले उन्हें भगवान मानकर दश झअवतारों में स्थान दिया । यह इनकी घामिक उदारता ओर सामाजिकता का साक्ी हे । जीवन का यथाथ बहुमुखी थच व्यापक रूप इनके ज्ञानगोचर हुआ था । उसी का इन्होंने अपनी रचना का विषय बनाया. व्यास वाल्मीकि गुणास्य के ये बड़े प्रशंसक थे । व्यास्र को तो अपना गुरु मानकर स्वयं का ब्यासदास कहा करते थे । इस श्रद्धा का कारण भी यही है कि ये सभी जीवन के यथाथ द्रप्रा कवि हैं २-रचनाएं चमेन्द्र की छोटी बढ़ी ३३ रचनाओं का पता लग चुका है । इनमें से पद प्रकाशित हैं ओर १५ उनके प्रकाशित प्रर्थों में निर्दिपर हुई हैं । इन सब को चार भागों में बाँटा जा सकता दे - १--पद्यात्मक सूदूम रूपान्तर । २--उपदेशात्मक | ३-उरीति संबधी | ४ -पफुटकल । इनमें स एक एक भाग की प्रत्ये+ रचना का सूदम परिचय यह है । १श-पद्यात्मक स्च्म रूपान्तर इस भाग में ४ रचनाएँ आती हैं । रामायण मजरी भारत मंजरी वृहत्कथा मंजरी दशावतार रित तथा बीद्धावदान- कल्पलतिका । इनका परिचय निम्न प्रकार से है -- (अ) रामायण मंजरी--यह वाल्मीकिकृत रामायण का पद्यों में किया सूदम रूप हे । काव्य कला की दृष्टि से इसका महत्व बहुत अधिक नहीं है । पर ग्यारहवों शताब्दी में रामायण का पाठ कितना और कैसा था --इसका परिचय इस प्र थ से भली भाँति मिल जाता है। (झा) भारत मंजरी - यह महाभारत का सूचम रूपान्तर है । इसमें भी काव्यव्व के दशन अधिक नहीं होते । पर मूल ग्रन्थ के तत्कालीन पाठ का सादइय रामायण मंजरी से भी अधिक इसमें प्राप्त होता है । चेमेन्द्र ने इसमें महाभारत की छोटी से छोटी घटनाओं




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