श्रेष्ठ प्रेम कहानियाँ | Shreshtha Prem Kahaniyan

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Shreshtha Prem Kahaniyan by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जो लिखा नहीं जाता १४ दूसरे को तकलीफ नहीं दे सकते । और हमारी यातना भी ऐसी है जिसे हम साथ- साथ खुलकर भोग भी नहीं सकते कहते हुए उसने जूड़े के पिन निकाल लिये थे और एक पिन से लॉन की धरती पर लकीरें खीचती रही थी । चारों तरफ़ एक अजीब-सी बेबसी व्याप रही थी । शाम का धूंघलका गहराता जा रहा था । पेड़ निस्तब्य खड़े थे घर की इमारत में अधेरा बे-तरह भरता जा रहा था । सुदर्शना के पिताजी बरामदे की बिजली जलाकर भीतर चले गये थे । पता नहीं सुदर्शना ने क्या महसूस किया था धीरे-से बोली थी अब तो अंधेरा और बढ़ गया है आओ बरामदे में चले । नहीं पता कि सुदर्शना ने यह पांच वर्षो का वक्‍त कैसे गुजारा क्योकि घर में उसके पिता को छोड़कर और कोई था ही नही । पिता और पुत्नी--यही दो जने थ। और जब उसके पिता की मृत्यु की ख़ बर मिली तो में बहुत परेशान हुआ था अन्दरूती परेशानी यह थी कि अब्र सुदर्शना का क्या होगा ? वह कहां जाएगी? शायद वापस महेन्द्र के पास । और चारा भी क्या है ? चलते वक्‍त उम्मीद तो नही थी कि महेन्द्र आएगे षर पहुंचा तो वह मौजूद थे । क्रिया-कर्म के वक्‍त उन दोनों के पुन विकसित होनेवाले रिश्तों का एहसास होने लगा था । शायद सुदर्शना ने जान-बूझकर उन्हें कुछ नहीं करने दिया था। शायद वह चाहती थी कि अपने? अकेलेपन का दायरा तोड़कर महेन्द्र ही हाथ बढ़ा दे इसीलिए उस दोपहर जब बग़ल वाले कमरे में महेन्द्र थे और हम बैठे बात कर रहे थे तो मैने उससे कहा था कब जा रही हो तुम ? ० कहा ? . - मै मुसकरा दिया थय । वह भी सुसकरायी थी और फिर उदास होते हुए बोली थी यहा और वहां में क्या फ़रक है ? यहा यह दुख है कि मेँ बीत रही हुं वहा यह कि मुझे वीतना पड़ता है । वह सब तो सही है फिर भी कोई राह तो निकालों अपने लिए । शायद महेन्द्र इसीलिए आये है । लुम किसलिए आये हो ? उसने एकदम पूछा था । कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया था । वह फिर खिड़की के बाहर उठते हुए धूल के बगूलों को देखने लगी थी । उसके माथे पर पसोना छनछला आया था और बालों के रूए चिपक गये थे । उसकी सांस भारी हो गयी थी । कुछ क्षणों की ख़ामोशी के बाद उसने कहा था देखो सब-कुछ सबसे नहीं कहा जा सरुकता । इतना खुलकर जिन्दगी में नहीं रहा जा सकता | कुछ खूबसूरत जितना ही में उसे समझाने की कोशिश करता था उतना ही वह उलअती जा




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