राजस्थान का पिंगल साहित्य | Rajsthan Ka Pingal Sahitya

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Book Image : राजस्थान का पिंगल साहित्य  - Rajsthan Ka Pingal Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) बेराट गाँव से मिला है जो उस समय की प्राकृत में है । प्राऊुत के बाद यहां अपभ्रद् का प्रचार हुआ। इसमें भी प्रचुर साहित्य रचा गया जिसका अधिकाद श्रेय जन विद्वानों को है । डिंगल-लगभंग छठी से लेकर १३ बॉ शती तक अपर यहाँ को साहित्यिक भाषा के पद पर आरूढ रही । त्तदतर इसका प्रभाव क्षीण होने लगा और इसीके लोकप्रचलित रूप राजस्थानी ने इसका पद ग्रहण करना प्रारभ किया जिसका एक रूप (मारवाडी) डिगल नाम से विख्यात हुआ। डिगल भाषा में चारण लोगो ने अधिक लिखा है। इसलिए कोई-कोई डिगल साहित्य को चारण साहित्य भी कहते है । राजस्थान में इस जाति के लोग पहुले पहल मारबाड में आकर बसे थे । वहाँ से धोरे-धोरे राजस्थान की दूसरी रियासतो में फंले और अपने साथ अपनी भाषा को भी लें गये । इस प्रकार इसका प्रवेश राजस्थान की अन्य रियासतो में हुआ । राजपुतो और चारणों का पारस्परिक सबथ बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा था । उन्होने डिंगल भाषा-साहित्य को बहुत प्रोत्साहन दिया । मध्यकालीन हिदू- मुस्लिस संघर्ष के वातावरण और राजनीतिक घटना चको से भी बहुत मदद मिलो । राजा-महाराजाओ द्वारा सम्मानित होते देख अन्य जातियों के लोगो ने भी इसे अपनाया और इसमें साहित्य-निर्माण करना प्रारंभ किया । डिगल साहित्य के दो सर्वश्रेष्ठ काव्य होला मारूरा दुहा और वेलिक्रिसन रुकमणी रो चारणेतर कवियों ही के रचे हुए है । डिगल का सर्वोत्तम गद्य-प्रंथ नैणसी री स्यात भी एक बंदय लेखक की रचना हैं । डिंगल साहित्य प्रघानतया वीर रसात्मक हैं । इसमें राजपुत जाति के इतिहास उसको सस्कंति एवं उसकी भाव-भावनाओं की बड़ी सुन्दर व्यजना हुई है । स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ ठाक्र ने इसकी प्रशंसा में लिखा है कि भव्ति- रस का काव्य तो भारतवर्ष के प्रत्येक साहित्य में किसी न किसी कोटि का पाया जाता है । राधा-कृष्ण को लेकर हर एक प्रान्त ने मंद या उच्च कोटि का साहित्य पंदा किया हैं । लेकिन राजस्थान ने अपने रक्त से जो साहित्य निर्माण किया है उसके जोड़ का साहित्य और कहीं नहीं पाया जाता । और उसका कारण हे । राजस्थानी कबरियों ने कठिन सत्य के बीच में रहकर युद्ध के नगारो के बीच अपनी कविताएं बनाई थीं । प्रकृति का तांडव रूप उनके सामने था । क्या आज कोई फेवल अपनी भावुकंता के बल पर फिर बह काव्य-सिर्माण कर सकता हू ?




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