पूर्व एशिया का आधुनिक इतिहास खंड - २ | Purva Asia Ka Adhunik Itihas Khand- 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33.05 MB
कुल पष्ठ :
365
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पद्माकर चौबे - Padmakar Chaube
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हेराल्ड एम. विनाके - Herald M. Vinake
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संचरिया पर जापान का प्रभाव ५६९ देशमक्त समितियों के जिनकी संख्या बढ़ती जा रही थी उपायों के प्रति सहिष्णुता की भावना प्रकट करने के पीछे भी व्यक्तिगत स्वार्थ था । लेकिन इस प्रचार तथा आतंक- वादी प्रवृत्ति के लोगों के उद्देश्य को दृष्टि से ओझल कर देना ठीक न होगा । उन्हें वास्तव में राज्य के कल्याण की चिन्ता थी । भ्रष्टाचार-कांडों में ऊँचे-ऊँचे पदों पर आसीन अधि- कारियों को ग्रस्त देखकर हर देशभक्त यह अनुभव करता था कि शासन-व्यवस्था में कहीं-त-कहीं गड़बड़ी है । भ्रष्टाचार के कई कांड तो प्रकाश में आने ही नहीं पाते थे । इन उच्च-पदस्थ अधिकारियों का इस प्रकार के कांडों में प्रकट हाथ होने से युवक अधि- कारियों को सेना का नियंत्रण पाने में सुविधा प्राप्त हुई । दूसरी सुविधा उन्हें यह थी कि वे अपने लाभ के लिए उद्योगपतियों से एका करने को तत्पर थे । इस प्रकार देश भक्ति- पूर्ण और हृदयस्पर्शी प्रचार करने के लिए आधार बन गया था । अभी ऊपर जिस व्यक्तिगत हित का उल्लेख किया गया है उसका पता इस बात से लगता है कि १९२२ के बाद के वर्षों के बजटों में थल-सेना तथा नौ-सेना को कम महत्त्व दिया जाता रहा । नौ-सेना के मामले में वार्शिंगटन सम्मेलन के समझौतों के आधार पर उसका व्यय न बढ़ाने का एक उचित बहाना था। अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के जरिये नौ- सेना का प्रसरर इस प्रकार सीमित रखने की अवधि १९३० के लंदन समझौते के आधार पर बढ़ायी गयी । लेकिन जब इस समझौते को अनुसम्थन के लिए डाइएट के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो नौ-सेना के युवक वर्ग ने इसका जबदेस्त विरोध किया । ये दोनों समझौते दलीय सरकारों द्वास किये गये थे जो इसके फलस्वरूप विनियोगों में कमी के लिए भी उत्तरदायी थे । यही बात सेना के विनियोगों में भी होने की संभावना उत्पन्न हो गयी । मिनसीटों सरकार का कार्यक्रम यह भी था कि और कोई ऋण लिये बिना ही बजट का संतुलन किया जाय । नौ-सेना का व्यय अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के आधार पर स्थिर कर लिया गया था । आन्तरिक दशा को देखते हुए सहायता तथा अन्य नागरिक प्रयोजन के लिए किये जाने वाले व्यय को कम करना सम्भव नहीं था । कर पहले से ही बढ़े हुए थे । व्यय कम करने का सबसे अच्छा अवसर सैनिक बजट में मिला । इसका औचित्य उन वार्त्ताओं के आधार पर भी सिद्ध किया जा सकता था जो शस्त्रास्त्रों में सामान्य रूप से कमी किये जाने के लिए हो रही थीं । दूसरे शब्दों में इन सब बातों के फरस्वरूप प्रतिरक्षा सेवाओं का कुछ हृद तक सिमटना अनिवाये था । इसका अर्थ यही था कि जो अधिकारी पहले से ही थल-सेना और नौ-सेना में थे उनके आगे बढ़ने के अवसर सीमित हों जायें और इस प्रकार उनके आगे बढ़ने की उच्चाकांक्षाओं में बाघा पड़े । व्यक्तिगत हित और देश भक्ति के इन उद्देश्यों का बड़ी सरछता से विदेश नीति से
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