मगध (इतिहास और संस्कृति ) | Magadh (itihaas Aur Sanskriti)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.45 MB
कुल पष्ठ :
69
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बैजनाथ सिंह 'विनोद' - Baijanath Singh 'Vinod'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १०) डे । पर इतना स्पष्ट मालूम पड़ता है कि मगध में नाग चत्रियों की बस्ती थी | गिंखिज के बीच में मशिनाग का स्थान था जिसे मशियार मठ के नाम से अब भी लोग जानते हैं। श्रतः . मगघ में नाग चत्रियों का आधिपत्य होना सबथा स्वाभाविक था | श्रेणिक बिम्बिसार हर्यक् वंश का था । दयंड्ल-वंश भी विस्तृत नाग जाति की ही एक शाखा है | झ्रतः इस तथ्य में कुछ भी फरक नहीं पड़ता कि बाहंद्रथ वंश के बाद मगघ में नागों की सत्ता स्थापित हुई । पर मगध में नागों की सत्ता स्थापित होने के पूव काशी में नागों की सत्ता स्थापित हो चुकी थी । ई० पू० £०० में काशी में नागों की सत्ता स्थापित थी । वस्तुतः परीक्षित की मृत्यु के बाद नाग पुनः प्रबल हो गए थे |) काशी नाग जाति का पीठ स्थान था । काशी के देवता शंकर महादेव थे । तीन लोक से न्यारी और शिव के त्रिशूल पर काशी का रथ है कि काशी के नाग चात्रियों ने वेंदिक ्रार्यों की प्रघानता को बहुत दिनों तक नहीं माना था । जैंन तीर्थकरों में तेईसवें तीथकर पाश्वनाथ काशी के नाग-- चनच्निय थे । राजकुमार थे । वह काशी के ब्रह्मदत्त राजाश्ों की परम्परा में. थे । पाश्ब॑नाथ ऐतिहासिक व्यक्ति हैं श्र उनका काल ई० पू० ८०० है |. इन सब से सिद्ध है कि यह पूर्व में नागों के श्रम्युत्थान का काल था | बिम्बिसार जब मगध की गद्दी पर बेँठा तो मगघ एक छोटा सा साज्य था। बुद्द के समय में मगध का विस्तार राज के पटना जिला श्रौर गया जिला के उत्तरी भाग तक को घेरता था । इसी भाग को राज मगघ भी कहते हैं। सुप्रसिद्ध बौद विद्वान राइस डेविड मगघ की सम्भावित सीमाएं इस अकार बताते हैं--उत्तर में गंगा पच्छिम में सोन पूरब में श्रंग देश श्र दक्षिण में छोटा नागपुर का जंगल । विद्वानों का मत है कि लगभग ईं० पू० ५४३ में बिम्बिसार ने मगघ का शासन सूत्र सम्हाला । उसने अपनी राजधानी गिरित्रज से जरा हृदा ली । उसने वेभार श्र बिपुलल गिरि के उत्तर सरस्वती नदी के पूरब तथा.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...