नल नरेश | Nal Naresh

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Nal Naresh by अयोध्या सिंह उपाध्याय - Ayodhya Singh Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ गान सुनाया जा रहा है भाषा को जटिल-से-जटिल बनाया जा रहा है उस समय एक होनह्ार नवयुवक सामने आता है और काम में आनेत्राठी घर की वे बातें--चढती और परिमाजित भाषा में-सुना जाता है जिनका संसार और मानव-जीवन से गदरा संबंध है । महाकाव्य के विपय में में अपनी सम्मति ऊपर प्रकट कर आया हूँ। मैने कद एक संस्कृत के विद्वानों को मेघदूत को महाकान्य मानते देखा हैं। ईिंदी-संतार के कुछ विद्वानों को मेने बिहारीसतसइ को भी महाकान्य कइत सुना हैं । स्वर्गोय पं० बदरीनारायण चौघुरी पं० अंबिकादतत व्यात्त और स्तयं बाबू हरिश्चं्र को भी मैने विह्वारीसततद को मदाकाव्य कहते पाया है | वे छोग बातचीत होने पर यह कहते थे कि यदि बिद्दारीठाढ महाकवि हैं ओर उनके ग्रंथ में मद्दाकवितर है तो वह महाकाव्य क्यों नहां हैं । यह व्यापक दृष्टि निधम- बद्धता के प्रेमिकों को पसंद न आवे परंतु उसमें मार्मिकता अव्य है जो अ्रउणीय ही नहीं आदरणीय भी हैं । इसी दृष्टि से मैं ऊपर अपना कुछ इस प्रकार का विचार प्रकट भी कर खुका हूँ । निठ नरेश को भी में उसी दृष्टि से देखता हूँ । ग्रंथ- कार ने इस ग्रंथ को १९ सर्गों में लिखा है और साहित्य- दपणकार के अधिफांदा नियमों को अपने ग्रंथ में सादर ग्रहण करने की भी चेष्टा की है। इन बातों पर विचार करने से उनके प्रंथ को महाफाव्य कहा जाता है। में इसे इस योग्य




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