लोक - कला निबंधावली भाग - ३ | Lok Kala Nibandawali Part -3 Rajasthan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : लोक - कला निबंधावली भाग - ३  - Lok Kala Nibandawali Part -3 Rajasthan

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

डॉ पुरुषोत्तमलाल मेनारिया - Dr. Purushottalam Menaria

No Information available about डॉ पुरुषोत्तमलाल मेनारिया - Dr. Purushottalam Menaria

Add Infomation AboutDr. Purushottalam Menaria

देवीलाल सामर - devilal samar

No Information available about देवीलाल सामर - devilal samar

Add Infomation Aboutdevilal samar

बलवन्त सिंह - Balvant Singh

No Information available about बलवन्त सिंह - Balvant Singh

Add Infomation AboutBalvant Singh

श्री वासुदेवशरण अग्रवाल - Shri Vasudevsharan Agarwal

No Information available about श्री वासुदेवशरण अग्रवाल - Shri Vasudevsharan Agarwal

Add Infomation AboutShri Vasudevsharan Agarwal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| मंत्र सुग्ध करने वाला दृत्य है । अपनी सबसे झधिक श्राक्षेक और चमकीली पोशाकों में स्त्री और पुरुष होते हैं । बस्दुतः सारा नत्य नेत्रों को बड़ा सुखकर होता है । .. मीणों और भीलों का विवाद-चृत्य--दुलहिन के घर से दूल्दे की विदाई के अवसर पर यह नत्य किया जाता है । भील तलबवारों थाली ब॒मादठ से सारे रास्ते भर नाचते हैं । दुलह्विन की चाचियां अपने हाथों मे टोकरियां और भाड़ लेकर नाचती हैं. । नेजा--अयह बड़ा रुचिग्रद्‌ू खेल-नत्य है और द्ोली के तीसरे दिन सम्पन्न किया जाता है। यद्द साघारणतया खेरवाड़ा और डू गरपर के मीर्णों में प्रचलित है | भीतरी पहाड़ियों मे रहनेवाली आदिम जातियों मे इस प्रकार का नत्य नहीं मिलता । एक बड़ा खम्भ जमीन मे रोप दिया जाता है । उसके सिरे पर नारियल बांध दिया जाता है । इस खम्भ को स्त्रियां हाथों मे छोटी छुड़ियां और बलदार कोरड़े लेकर चारों ओर से घेर लेती हैं। परुष जो वहां से थोड़ी दूर पर खडे हुए रहते है उस खम्भ पर चढ़ने का प्रयत्न करते हैं और नारियल ले भागते हैं । स्त्रियां उनको छड़ियों ओर कोरड़ों से पीठ कर भगाने की चेष्टा करती हैं । यह एक दिलचस्प खेल होता है । हजारों आदमी इसका अनुपस दृश्य देखने के लिये इकट्ठ हो जाते हैं । उद्यपुर के पड़ोस में रहने वाले भीलों का गौरी न॒त्य - श्रावण और भादों के मद्दीने मे यह अपने इष्ट-देव की पूजा सम्पन्न होता है। यह एक शुद्ध धार्सिक चृत्य है । भील अपने-अपने घरों को छोड़ कर गावों से बाहर निकल जाते है । यह नत्ये शिव के जीवन पर आधारित होता है । यह सुबद्द से शाम तक होता रहता है । एक महीने से अधिक समय भील लोग बाहर रहते हैं । इसमें भीलों के सबसे अच्छे नत्य-कौशल प्रदर्शित किये जाते है । ये कौशल बूढ़िया (शिव का लोकप्रिय नाम) के जीवन के धारावाहिक उपाख्यानों से सम्बंधित रहते हैं। रग आर प्रकारों से ये नत्य भरे हुए होते हैं। सारा दृश्य हमको दक्षिण भारत के कथाकली नृत्य की याद दिला देता है। इस नृत्य के पीछे कोई छझार्थिक राजस्थान के ज्लोकानुरंजन ११




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now