लज्जा | Lajja

Lajja by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, ९ रे लज्जा उसे चमकर कहा-“'दीदी और भया की डिकायत अम्मां से करने गई थी? वह हमें जब मार बठतीं तब ?” वह बोली-- क्यों तुम भेया को घूंसों से मार रही थीं ?” “अच्छा, जबसे नहीं मारूंगी, भना ! तू भी शिकायत सत करियों ॥ भला ग वह बोली--“'नहीं करूंगी ।' | .. .. ज़लियानवाला बागू की रक्तोतेजक घटना के कारण देश-भर में आत्स- बलिदान का रव गूंज उठा। अलकापुरी के स्वप्नों से मोहाच्छल् मेरे नव- _ बसंत-मय हृदय में इस घटना से कुछ आघात पहुंचा; पर बहुत हलका कितु राजू एकदम अग्निमय हो उठा । उस समय उसकी अवस्था प्रायः _ बौदहू वर्ष की होगी। इस छोटी अवस्था में ही वह दशेन-शास्त्र . और राजनीतिक विज्ञान के बड़े-बड़े जटिल ग्रंथों के अध्ययन में अपने दिन बिताने लगा । वह ऐंग्लो-इंडियन स्कूल में पढ़ता था। उसने विद्रोह की . उत्तेजना के कारण सकल में जाना छोड़ दिया । असहयोग आंदोलन के पहले से ही वह असहयोगी हो गया था ! राजनीतिक प्रंथों का उसनें बहुत अध्ययन किया। पर उनसे. उसे '' विशेष संतोष नहीं हुआ । हां, एक बात अवश्य हुई । वह यह कि उसे गंभीर विषयों के अध्ययन का चस्का लग गया । आज तक वह मेरी ही . तरह केवल तुच्छ किस्से-कहानियों की किताबों को ही. पढ़ा करता था 1 अब वह दर्दन, इतिहास, फिजिक्स, . केमिस्ट्री बायोलाजी, और तो क्या. 'डॉक्टरी की किताबों को भी समननपूर्वक पढ़ने लगा । पाठकों को अवश्य ही मेरी इस बात पर आइचयें होगा और यह अवश्य ही औपन्यासिक अत्यक्ति समभी जायगी । इतनी छोटी अवस्था में ऐसे-ऐसे गहन. विषयों बह पर मनन करने की प्रवत्ति का होना आइचर्य की हो बात हुं, इसमे संदेह तज्ना' पाते एरिति प्से कि शाओं शाया कसी दर. कांड पा . तब्से [मा गदि रके घता नंद ' के प्ले, हार पका पना




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