हिन्दी - वाड्न्मय का विकास | Hindi Wadnmay Ka Vikash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हा विदय-प्रवेदा ९9 मे निर्मित हुआ यह निद्चित कर सकना कठिन है। अत सर्दिग्प प्राघारो के बल पर बीसलदेवरासो की तुलना मे खुमानरासो को हिन्दी का प्रथम ग्रन्थ सानना समुचित नहीं है । बीसलदेवरासों की तुलना में चन्दबरदाई-प्रसीत प्रथ्वीराजरासो को भी रखा जा सकता है । इतिहास-प्रसिद्ध पृथ्वी राज का सुहन्मद गौरी के साथ अ्रन्तिम युद्ध तबकात-ए-नासिरी नामक फारसी इतिहास-ग्रत्थ के भ्रनुसार हिजरी ५८८ भ्र्थात्‌ सबत्‌ १२४८ मे होना माना गया है । परत पृथ्वीराजरासो की रचना का झ्रारम्भ बीसलदेवरासो के निर्माण- काल मे--यदि सवबत्‌ १२१२ वाली ही तिथि ठीक मानी जाय तो-- हो ुका होगा पर इस ग्रन्थ की स्थिति भी खुमानरासो जैसी ही है । इस ग्रस्थ मे जैसाकि हम श्रागे यथास्थान देखेंगे घटनाएँ पृथ्वीराज के कई झाताब्दी परवर्ती शासकों से भी सम्बद्ध हैं। इसमे निर्दिष्ट सबत्‌ प्रामाणिक इतिहास-ग्रन्थो से मेल नहीं खाते । भाषा की हृष्टि से भी ग्रन्थ के कुछ स्थल कई शताब्दी उपरान्त लिखें गये प्रतीत होते हूं। पर इधर बीसलदेवरासो के विषय से विद्वानों का विचार है कि गीनात्मक रहने के कारण इसकी भाषा मे भी श्रनेक परिवत्त॑न हुए पर वे परिवर्तन अभी तक सम्पुर्णत प्राचीन भाषा का स्वरूप विकृत नहीं कर सके । परत सवबद्‌ १०७३ को इसका निर्माण-काल मानने पर इसे ही हिन्दी का श्रादिग्रन्थ मानना चाहिए। सवबतु १२१२ के अनुसार भी जो कि अन्य ग्रन्थों के रचना-काल की अपेक्षा कही अधिक विदवसनीय है इसे श्रादिग्स्थ स्वीकार कर लेने मे कोई झ्रापत्ति नही होनी चाहिए । पर समस्या का अन्त यही नही हो जाता। विक्रम की झ्राठवी शताब्दी के प्रारम्भ से लेकर बीसलदेवरासो की रचना पर्यन्त यहाँ तक ही क्यो इसके श्रागे भी कई शताब्दी पयंन्त निर्मित ऐसी रचनाएँ उपलब्ध हुई है जिनकी भाषा है तो झपशभ्र दा ही पर यह भाषा प्राचीन अपभ्र श के समान सस्कृत की भ्रोर उन्मुख न होकर हिन्दी की झ्ोर श्रधिक उन्मुख १. हि० सा झा० इ० एृष्ठ २०८




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