विश्व ज्ञान संहिता १ | Vishv Gyan Sanhita 1

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Book Image : विश्व ज्ञान संहिता १  - Vishv Gyan Sanhita 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पदु-मनोविज्ञान आकांक्षाओं की तृप्ति के लिए उदारता दिखाता है । जिस प्रकार कुछ लोग अपने को जो खुद वे वास्तव में होते हैं उससे अच्छा समभते हैं उसी प्रकार कुछ लोग वास्तव में जैसे होते हैं उससे अपने को बुरा समभक सकते हैं। कुछ लोग अपने को नकार देते हैं। वे अपना बचाव नहीं करते। वे यह समभ सकते हैं कि उनमें कुछ भी प्रशंसनीय नहीं है । ऐसे लोग अपनी सामर्थ्य को कार्यान्वित नहीं कर पाते । वे सदा अपने दोषों की ओर देखते रहने से अपने को कम आंकते हैं। अपने को नकारने के कारण ऐसे लोग अपनी पूरी संभावनाओं को विकसित नहीं कर पाते । इस प्रकार हम देखते हैं कि लोग लगातार या तो अपना बचाव करने का या अपने को बढ़ाने का प्रयत्न करते रह सकते हैं। कुसमायोजित व्यक्तियों का सावधानी से अध्ययन करने से आत्मरक्षा और आत्म-उन्नयन की अनेक प्रविधियों का पता चला है। निस्संदेह हर भाषा में आत्म-रक्षा और आत्म-उन्नयन की इन प्रविधियों से संबंधित अनेक कहावतें हैं । कितु आत्म-रक्षा और आत्म-उन्नयन की इन प्रविधियों से अपना उचित मूल्यांकन नहीं किया जा सकता और अपने गुण-दोषों का सच्चा अनुमान नहीं लगाया जा सकता । दूसरे दाब्दों में सुसमायोजित व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जो अपने को न तो कम आंके और न ही ज्यादा | उसे अपनी योग्यताओं और दोषों को वास्तविक ढंग से आंकना चाहिए। कितु यह बहुत ही कठिन काम है। इसे या तो उचित आत्म-परीक्षा से या किसी परामर्श की सहायता से या फिर अपने मित्रों और शत्रुओं पर पुरा ध्यान देकर और अपने बारे में उनके अनुमान को समभकर किया जा सकता है। हमारे मित्र और शत्रु यदि हमारे दोषों की ओर संकेत करें तो हमें नाराज नहीं होना चाहिए और न ही अपने को उनसे हीन समभना चाहिए । दूसरे हमें किस तरह से देखते हैं हमें इसे समभकर अपने को ठीक करना चाहिए । व्यक्ति के विकास में दूसरी सहायक प्रविधि यह है कि वह जो काम करता है उसे उसी से तुष्टि मिलनी चाहिए और प्रतिष्ठा पाने की दृष्टि से काम नहीं करना चाहिए। प्राचीन धर्म के साथ-साथ आधुनिक मनोविज्ञान और मनद्चिकित्सा में इस बुनियादी बात पर जोर दिया गया है कि हमें यह जानना चाहिए 8 कि हर व्यक्ति प्यार करना और प्यार पाना चाहता है। दूसरे हमसे तभी प्यार करेंगे जब हम उन्हें प्यार करेंगे। कोई कितना ही बड़ा शक्तिशाली या धनवान क्यों न हो वह हमेशा दूसरों का प्यार पाना चाहता है । व्यक्ति को नैतिक शक्ति अपनी सुरक्षा की भावना को विकसित करके ही मिलती है क्योंकि उसे दूसरों की अपेक्षा होती है और दूसरों को उसकी। इस भावना के और ज्यादा विकास से मनुष्य को दूसरों के प्यार की जरूरत नहीं रह सकती है। सच्चा संन्यासी जो भारतीय समाज का सर्वोत्तम आर्दश है हर व्यक्ति को उसके धन या जाति- पांति का खयाल किये बिना प्यार करता है और हर व्यक्ति को यह अनुभूति कराता है कि वह उससे प्यार करता है । 2. पशु-मनोविज्ञान डार्बिन के विकासवाद के साथ मनुष्य और पशुओं के व्यवहार के बीच जो खाई थी उसे पाटने का प्रयत्न किया गया । चूहों बिल्लियों और कुत्तों का अध्ययन यह जानने के लिए किया गया कि वे किन स्थितियों में सीखते हैं । पद्ुओं पर थार्नडाइक द्वारा किये गये विख्यात प्रयोग से पता चला कि जब किसी भूखी बिल्ली को समस्या-बक्स में रखकर बक्स के बाहर खाना रखा जाता है तो वह बक्स से बाहर निकलने के लिए तरह-तरह से कोशिश करती है। संयोगवदा उससे बक्स का एक बटन दब जाता है जिससे दरवाजा खुल जाता है और वह बाहर आकर खाना खा लेती है। थार्नडाइक ने यह देखा कि बार-बार दुहराने से गलतियां धीरे-धीरे कम होती गयीं और ठीक प्रयत्न ज्यादा जल्दी से किये जाने लगे जिससे कुछ ही प्रयत्तों के बाद बिल्ली बटन दबाकर बाहर निकलने लग गयी। इस प्रयोग से यह सिद्ध हुआ कि पशु बिना किसी तर्क के सीखते हैं और उनका सीखना प्रयत्न और त्रुटि द्वारा होता है। एक जर्मन मनोविज्ञानी कीलर ने थार्नडाइक की इस मान्यता का कि पशु प्रयत्न और त्रुटि द्वारा सीखते हैं परीक्षण करने की कोठिश की । उसने चिंपैंजी कैसे सीखते हैं इसका अध्ययन किया । उसने चिंपैंजी को एक पिंजड़े में रखकर पिंजड़े के बाहर एक केला रख दिया । पिंजड़े में उसने एक छड़ी भी रख दी। चिंपैंजी ने केले को पाने




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