विश्व साहित्य में रामचरितमानस भाग 1 | Vishva Sahitya Me Ramcharitmanas Bhag 1

Vishva Sahitya Me Ramcharitmanas Bhag 1 by राजबहादुर लमगोड़ा - Rajbahadur Lamgoda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ८ ) जे तो? करूुण-रखा कर कविता ऊनयाध्याकों से आवक उप्तसस्प से अन्य कंदा तू ही सिर सके । कवि ने लिखा है घर ससान परिजन जजु मभूता । सुत हि नहूं जमदूता 0 यह वही अयोध्या है जिसका सु दर चित्र अयोध्याकॉंड के आरंस में ही खींचा गया है । संकेताथ एक चापाई दी ज छः न धर श्र केकेयी आर संथरा की दुए्ता के परिणाम को देखकर मानों विश्वास अयोध्या से उठ गया है ) । डरपहिं एकहि एक निहारी 1 दूसरा उदाइरण देखिए । राजतिछक होनेवाला है। अयोध्या में चारों ओर धूम मच रही है । गुरु वश्चिष्ठ भी अपना अंतिम उपदेदा देकर अभी गए हैं । भगवान्‌ राम एक विचित्र ही विचार-प्रवाह से पढ़ गए कवि लिखता हे-- न ददादपिमदर कारक | राम डदयें अस विसमउर सयऊ 1 जनमे एक संग सब भाइ । भोजन सयन केलि लरिकाई ॥। करनवेघ उपबीत बिद्याह्म । संग संग सब भए उद्लाह्ा विमल बंस यह अनुचित एकू । वंघु विदाई बढड़ेहि अभिषेकू ।। क्या कोई कृत्रिम स्वगत वार्ता इस मूक विचार-अ्रवाद्द की तुछूना में रिक सकती है ? इसीलिये संस्कृत में कवि की ब्याख्या करते हुए उसे क्रांतिदर्शी कहा गया है । अब स्वयं कवि की आलोचना देखिए-- पड प्रम॒ सप्रेम प्चितानि सुहाई । हरउ भगत मन के कुटिलाई ॥।




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