जगदगुरु भारतवर्ष | Jagadguru Bharatvarsh

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Jagadguru Bharatvarsh by सुखसम्पन्ति राय भण्डारी - Sukhasampanti Rai Bhandari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्घ जगड़द मारतवघ | फ्रैबीन काल मे संसार के दूर दूर के राष्ट्रों में भारत के तस्कझनें की विमल काोर्मि इतनी फैली हुइ थी कि हजारा कासा की टुरी से कडे २ विद्वान नत्वज्ञान और अध्यान्म विज्ञान के गहरे समुद्र में आनंद स्नान करने के लिये यहां आति थे । का महान सत्वज्ञानी पायधागोरस हिन्दू तल्ज्ञान का अध्ययन छिप यहां आया था. भोर भात्मा के आवागमन का सिद्धान्त वह यहां से ले गया था । डॉक्टर एनफिल अपनी सानजत जी पिप]080ूी९ में लिखते हैं फह फिठे फिया 1ए ( लीक ) फराइ इस णिए घर छुपापृत्0न8 6 सण्पूप्राशा हिप09]160छ6. वए िध- टुारव है. 5 शा] 885 दिए 80 01815 पफे0 6 च्शक्ष8एव सलपघार छापा पूीपितिकापुपाएान पा. (कह626 मचातू कम देल्‍्ते हैं कि हिन्दुस्तान में पायधामोरस कै७555९1165 भार पायरा ( _ए0 ) ज्ञान प्राप्त करन के लिये माय थे । ये महानुभाव प्रीस के नामाझित ततज्ञानी हो गये । इसी अन्थ मे आगे चलकर लेखक महाशय कहते हैं - छाए ए ५8 प्ेएएप्िफ्४ एप पैछ पिएह९४६8 ए0ा। ल्शााएट डॉ? दाह छ्ताएं 10 ४ 881 पंशपाएस्‍पं रण) धि6 फेडत5 मधोत्‌ प्रकृति सम्बन्धी प्रीक लोगों के अि अर पक कै कीज्पीइएएरण अफ्पे डिक 010 प8 उघप्ा8 त00 सन्देश सेफ एव हिफ्रघा 82085 960 फाएवॉजिन तेटर्स्‍ते विलकि- उस फानिरीसा 19. एहए९]19वं 0 टणकीह दि 115 निपल्ककूफा लो ०तो०8 जचात्‌ प्रेटो और पायधागोरस एक ही




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