चीन और नेहरू | Cheen Aur Nehru

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शस्त्रास्त्र दिये थे । इसके बावजूद चीन की राष्ट्रवादी सरकार श्र उसके नेता व्यांगकाई शेक चीन के बाहर फारमोसा में खदेड़ दिये गये । एक श्र यदद स्थिति थो दुसरी श्रोर भारत को झमेरिक्रा की सद्दायता की श्रावश्यकता थी | भारत में व्यापक रूप में झननाभाव था । भारत अमेरिका से श्रार्थिक सद्दायता तो. चाहता दी था साथ ही गलला मी चाहता था । चीन के प्रति नेहरू जी की नीति इस कठिन कसौटी पर कसी जाने वाली थी । इस कठिन परिस्थितिमें भी चीन के प्रति नेहरूजी की दृष्टि में कोई परिवतन नहीं दुआ । एशिया के उत्थान के लिए चीन के झ्रम्युद्य को जिस प्रकार वे बराबर श्रावश्यक समभकते थे उस प्रकार ही वे समभकते रहे । चीन को मान्यता देने के सम्बन्ध में उन्होंने साफ साफ यह्द घोषित कर दिया कि एशिया में जो क्रान्तिकारी घटनाएँ घट रही है भारत उनकी उपेक्षा नद्दीं कर सकता । जिस समय उन्होंने यह घोषणा की उस समय उनका मस्तिष्क झ्ाइने की तरदद साफ था श्रौर उसमें उनके हृदय की यह श्ावाज साफ-साफ नजर झ्रा रही थी कि भारत एशियाई उपनिवेशों को परतन्त्रता के बन्घन से उन्मुक्त द्ोकर राष्ट्रीयता के विशुद्ध वातावरण में विकसित होते देखना चाहता दै । वद्द इन देशों की जनता का शोषण श्र उत्पीड़न बरदास्त नहददीं कर सकता । दिन्दचीन दहिन्दर्शिया ्ौर झन्य एशियाई उपनिवेशों की जनता में भारत की विशेष दिल- चस्पी है । जिसके छृदय में एशिया के श्रभ्यद्य की ऐसी गहरी लालसा रददी दो उससे यद्द श्राशा करनी दी नहीं चाहिये थी कि वद्द एशिया में जन्म लेने वाली नयी स्वतन्त्र शक्ति की श्रोर मेत्री का दाथ न बढ़ायेगा । फिर भी सबदा कूटनीति पर ही विश्वास करने वालों की समझ में यदद बात नहीं झायी । छमेरिका की तो बात दूर रही भारत में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो नेइरूजी पर झ्मेरिका के हाथ बिकने का इलजाम खुल्लम-खुल्ला लगा रहे थे । यद्द इल्जाम लगाया था उन लोगों ने जो स्वयं मनसा वाच्स कर्मणा राजनीतिक रूढ़िवाद के शाथों बिके हुए हैं । श्रस्तु नेहरूजी की अिय-बयफ सकल कक नव पी किन किक कान ध ककाएएयं। एप कम कल १ लेखक की पुस्तक-- भमेरिका में नेहरु पृष्ठ संख्या २४ । चीन और नेहरू कक




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