बृहत्तर भारत | Brihattar Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वृहत्तर भारत । ष् और किसकी स रक्षितामें था अथाह जल था ? इत्यादि प्रश्न उपस्थित थे । उस स्कय न मृत्यु थी न अमरत्व था न दिन था और न रात्रका अन्धकार वायु शन्य निस्वास छेनेचाठा वहीं एक था जिसके अतिरिक्त सब्वं शुन्य था । नावाथ इसके वाद जब समाजने चिस्तृत रूप धारण किया जीवनकी नवीन समस्याये उठीं उस समय इस देशने अथ शास्त्र को न्यायकी पर्रिधिमें और राजनीतिकों नीतिकी परिधिमें रखकर घर्स्स-शास्त्र और राजधर्म्सको धघर्स्मकी नीव पर खड़ा किया और घर्स्सको ही एक मात्र समाज जीवनका आधार माना । इस चिनाशी क्षणभडर जगतके प्रति उदासीनता ओर अनादि अनन्त अतिन्द्रिय जगत पर असीम विश्वासने ही जातीय शिव्प और इतिहासके रूपमें आत्मप्रकाश किया । एक आर भारतका इतिहास विश्व इतिहास भारतवर्ष विश्व भारत और दुसरी ओर भारतीय शिव्पने प्रतिमाओंके रूपमें नहीं अरूपमें सार्थक होकर रूपातीतको प्राप्त किया । इसलिये हिन्दुओंकी ऐतिहासिक उदासीनताका निदान आधुनिक इतिहास वेत्ताओंकी बुद्धिके परे हैं । यह उल्फन सम्भवत कोई अध्यात्मविश्लेषक हो सुलभा सके परन्तु हमें यहां केवल शारतैवर्षके इतिहास पर चविश्वका प्रभाव और अन्तरांष्ट्रीय इतिहासके विकाशमें भारतवर्णका प्रशाव ही दिखाना है । आज कल जब कि राष्ट्रॉमे पारस्परिक घ.णाके भाव दिखाई दे रहे हें




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