हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दी | Hindi Sahitya - Beesavin Shatabdi

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Hindi Sahitya - Beesavin Shatabdi by आचार्य नंददुलारे वाजपेयी - acharya nanddulare vajpayi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ विशालता कै साथ जो परिणति या समन्वय उन्होंने दिखाया है वह समाज श्रौर साहित्य को प्रसाद का श्रपना प्रसाद है यह चर्चा यहाँ इतनी इसलिए बढ़ा दी गई है कि प्रसादजी श्र नवीन रहस्यवादियों के सम्बन्ध मे नये श्रौर पुराने दोनों ही वर्गों के लेखकों में बहुत काफी श्रान्ति फैली हुई है। काव्य और कला की कोई माप स्थिर न होने के कारण नये समाजशास्त्र और मनोविश्लेषक इस क्षेत्र पर मनमाने हमले कर रहे हैं श्र पनी नई थिद्या इस पर आज़माने में लगे हुए है | धदि इनका लक्ष्य वास्तविक ज्ञान-विस्तार होता श्र ये साहित्य-समीक्षा के झ्रन्तर्गत अपने-अपने विषयों की सीमा समभते हुए तटस्थ वैशञा- निक॒श्रनुशीलन करते तो साहित्य-समीक्षकों की बहुत कुछ सहायता श्रौर साहित्य का उपकार भी कर सकते थे पर इनका लय तो है साहित्य-चेत्र पर एकल्ब श्राधिपस्य जमाना श्रौर साहित्य की श्रपनी सत्ता को मिटा देना । ऐसी अवस्था में इनसे साहित्य के किस लाभ की झ्राशा की जाय | अ# छायावाद श्रौर रदस्यवाद पर इनका श्राक्रमण नादिरशाही ढ़ का है क्यों कि इसी से ये श्रघिकार छीनना चाहते हैं । छायावाद या पलायनवाद यही इनका नारा है जिसके बूते ये साहित्य के एक युग-विशेष को हृडप जाना चाहते हैं । इस युग के साहित्य को हरी-भरी खेती पर ये कदर ढाते फिरते हैं । भाँति-भाँति के फ़िक्रे निकाल- कर इन्ही श्रस्नो से केवल छायावाद और रदस्यवाद के काव्य को ही नहीं पूर्वचर्ती सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य को--हमारी राष्ट्रीय संस्कृति की झमिट घारा को- मिटा देना चाहते हैं | देखें इनकी उछुल-कूद से पैदा हुई झराजकता कितने दिन टिकती हैं छायावाद युग को चाहै जिस नाम से पकारिए इसका एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व है । द्रीय इतिदास में जिन सुस्पष्ट प्रेर्णाश्रों से यह उत्पन्न हुझा और जिस श्ाव- श्यकता की पूति इसने की उसकी ओर ध्यान ने देना श्राश्चर्य की बात होसी | हिन्दू जाति के नाना भेदॉ-प्रमेदों के बीच एक सन्ञटित जातीयता का निर्माण हिन्दू मुस्लिम श्रौर ईसाई श्रादि विभिन्न धर्मातुयायियों में एक श्रन्तव्यापी मानवसूत्र का श्रनुसन्घान राष्ट्री-राष्ट्री के बीच खाइयाँ पाटना--महायुद्ध के पश्चात श्रपने देश के




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