हिंदी बाल साहित्य की रूपरेखा | Hindi Bal Sahitya Ki Rooprekha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
88.43 MB
कुल पष्ठ :
321
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिंदी बाल साहित्य की रूपरेखा बालक की शारीरिक और मानसिक अवस्थाएं आगे भी विकसित होती रहती हैं पर सूक्ष्म रूप में बालक के लिए साहित्य को आवश्यकता का प्रारंभ होजाताहै। ही बालक की लगभग तीन वर्ष की वय वह वास्तविक अवस्था ह जब बालक अपनी सीमा में घर नामक अपने संसार से परिचित हो जाता हैं अपन शरीर के अंगों को पहचानने लगता है और उसे छोटे-छोटे वाक्य बोलना आ जाता है । वह अपना नाम भी जान जाता है और बतला देता है तथा वस्तुओं के पूथक्र वैशिष्ट्य को समझने लगता है । र ली बाल साहित्य कीं वास्तविक आवश्यकता यहीं से प्रारम्भ होती दूं क्योंकि इसी अवस्था पर आकर बाल साहित्य के आभोग की मानसिक क्षमता बालक में आपाती है। कर चिफए यह मासिक क्षमता जन्म से लेकर पारिवारिक परिवेश में क्रमशः विकसित होती है । लौक ने लिखा है---मनुष्य का मन एक स्वच्छ काले तस्ते के समान है जिस पर बिना लिखे कोई संस्कार अंकित नहीं होता । जिस प्रकार काले तख्ते पर लिखे जाने के कारण अनेक प्रकार के संस्कार अंकित हो जाति हैं इसी प्रकार हमारे स्वच्छ मन्त पर वातावरण जीवन अनुभवों के कारण अनेक संस्कार पड़ते हैं। हें. लौक के द्वारा संकेतित क्रिया बालक की जन्मगत अवस्था से ही सम्बद्ध है जिस पर धीरे-धीरे संस्कारों की लिपि की रचना होती जाती है जो तीन वर्ष की बाल्यावस्था पर आकर बालक के व्यक्तित्व को एक स्वरूप प्रदान करने लगती है । का की तीन वर्ष की अवस्था से लेकर युवापूर्व अवस्था तक बाल्यावस्था है जिसका भावात्मक और ज्ञानात्मक विकास की दृष्टि से अनेक रुपों में विभा- जन किया गया है । एक विभाजन इस प्रकार है-- (१ शिशु अवस्था--तीसरे-चौथे वर्ष की आयु तक (२) बचपन--आठ या नौ वर्ष की आयु तक (३) पूर्व किशोर अवस्था--ग्यारह या बारह वर्ष की आयु तक (४) उत्तर किशोर अवस्था--चौदह वर्ष की आयु तक (५) कुमारावस्था--बीस वर्ष की आयु तक बाल्यावस्था का दूसरा विभाजन इस प्रकार है टी िटटशटएटससएपटपपएनससससपसससपाकलवाना १ बालगीत साहित्य ले० निरंकारदेव सेवक पृ० ३ से उद्धृत । २. चाइल्ड स्टडी ले० रेड जी० एच० डिक्स ।
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