भारत - पाक संबंध | Bharat - Pak Sambandh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कट्टरवादी शक्तियाँ भारत और पाकिस्तान खासकर पाकिस्तान को प्रभावित करेंगी । उनको स्पष्ट धारणा थी कि भारत एवं पाकिस्तान एक दीर्घकालीन शत्रुतापूर्ण संबंधों के रास्ते पर चलेंगे क्योंकि विभाजन एक सुनियोजित राजनीतिक व्यवस्था थी । उसने इस उपमहाद्वीप में लगभग ग्यारह वर्षों में विकसित हुए एक आम समाज को विखंडित कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान का विघटन द्विराष्ट्र के सिद्धांत के ताबूत में आखिरी कील थी । पाकिस्तान क्षेत्रीय असमानता धार्मिक पहचान और भारत के मुसलमानों के रक्षक की भूमिका निभाने की महत्त्वाकांक्षा से जूझ रहा था । पाकिस्तान की इसलामी पहचान की एक खास विश्वसनीयता बनाने की बेकरारी ने पाकिस्तान की शासन व्यवस्था द्वारा विकसित चरमपंथी इसलाम के उद्भव को प्रोत्साहित किया । सांस्कृतिक बौद्धिक और सामाजिक स्तरों पर पाकिस्तान के नीति-निर्धारकों ने एक अन्य नीति का सहारा लिया जो खाड़ी और पश्चिमी एशिया के देशों के साथ संबंध विकसित करना था । परिणामस्वरूप पाकिस्तान ने उपमहाद्वीपीय भारत में अपनी गहन ऐतिहासिक जड़ों से खुद को काट लिया और साथ-साथ वह खाड़ी व पश्चिमी एशिया के इसलामी समाज का भी अभिन्न अंग बनने में विफल रहा। इसका कारण यह साधारण सा तथ्य था कि उपमहाद्वीप में इसलाम पश्चिमी देशों व खाड़ी क्षेत्र के इसलाम से अलग है। उपमहाद्वीपीय इसलाम पर एक ओर अरब तुर्की पर्सियन और मध्य एशियाइयों के बीच सैकड़ों वर्षों के संपर्क का प्रभाव और समान रूप से समृद्ध व पुरातन हिंदू संस्कृति का प्रभाव था। पाकिस्तान ने अपनी राष्ट्रीय पहचान को नष्ट करके उसे पश्चिम एशियाई व खाड़ी देशों के साथ जोड़ने का प्रयास किया जो सामाजिक या भावनात्मक स्तर पर एक सफल प्रयास नहीं था। हाल के वर्षों में पाकिस्तान के मुसलमानों में कट्टरपंथी संघर्षों से स्थिति और भी खराब हुई है । अहमदियाओं को गैर-मुसलमान मानकर जाति से बहिष्कृत कर दिया गया है। शिया और सुननी सिर्फ सैद्धांतिक स्तर पर नहीं बल्कि हिंसक संघर्ष में गुत्थम-गुत्था हो रहे हैं । सिंधी बलूची और पठानों की गहन पहचानों के परे जाने में इसलाम समर्थ नहीं हो पाया है जो पंजाबियों के जनसंख्या संबंधी और राजनीतिक प्रभुत्व से अप्रसन्न हैं। आधी शताब्दी बीतने के बाद भी भारत के विभिन्‍न भागों से पाकिस्तान गए लोगों को अब भी मोहाजिर कहा जाता है। इस स्थिति में गैर मुसलिम अल्पसंख्यकों के भविष्य के बारे में बोलना बेमानी है। विभाजन के समय हिंदू ईसाई सिख और अन्य संप्रदायों के लोग पश्चिमी पाकिस्तान 13




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