व्यावहारिक मनोविज्ञान | Vyavaharik Manovigyan

Vyavaharik Manovigyan by डॉ. पद्मा अग्रवाल - Dr. Padma Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यावहारिक सनोविज्ञान एक में सिद्धान्त का विवरण हे--जिसमैं प्रत्येक मनोवैज्ञानिक धारणा के स्वरूप पर बल दिया गया है दूसरे में उनका उपयोग दिखलाया गया है । सामान्य मनोविज्ञान मैं बृत्ति ( 050८ ) के स्वभाव और उसकी विशेषता का अध्ययन होता है-बवत्तियाँ क्या हैं कितने प्रकार की हैं श्रौर किस प्रकार इन इ्त्तियों के संघटन पर चरित्रनिमांण निभर है १ द्यावहारिक मनोविज्ञान में बत्तियों के परिमाजन-उन्नयन का साधन मिलता है. जिससे_ व्यक्तित्व विकास _( 267500000/ प००७000#27 उचित रूप से हो सामाजिक व्यवहार मैं मनुष्य कुशल हो उसका व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पूर्ण हो बाह्य श्रौर श्राभ्यन्तरिक जीवन मैं सामंजस्य स्थापित रहें संवेग की दृष्टि से मन स्थिर रहे श्र इस प्रकार मानव-जीवन समृद्ध बने ।# सामान्य मनोविज्ञानका च्ेत्र अधिक विस्तृत हैं व्यावहारिक मनोविज्ञान उसका एक भाग है। विपयवाद ( 68८८0 57 ) क्रियावाद ( घााट०शफाडडक ) . प्रवेगववाद ( 200एफालांट उद00 और न कह] 98.007 &घा0ा 04 ६८ ८0वें हैणा पद 81 8पिदघिघ0000 6 १ विषय-वादू ( 8घपटप्ण्कीडिए ) मत के प्रवत्तेक अमेरिका के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक टिचनर हैं । इनके अनुसार मनोविज्ञान-शास्त्र में सन की केवल सानसिक विषय ( 70८५9 ००ट्पा ) का अध्ययन होता है। इन सबकी जानकारी के लिये अन्तःथ्र क्षणा ( द05 6८घिं00 ) सबसे अच्छी विधि है । २. क्रियाबाद ( रएएपं०08डाए ) के प्रवत्तक चुन्ड्ट फ्रेन्ज़ हैं । इनके अनुसार सनोविज्ञान के अध्ययन का विषय सन के क्रिया-व्यापार ( रा घिपटदिंणाड ) ड्दं इच्छा कठुपना तथा स्छति इत्यादि मान- सिक विषय ( एए60५ ०0060५5 ) नहीं । काल स्टस्फ ने भी वुन्डट फ्रेन्ज़ का अनुमोदन किया और यह भी प्रमाणित किया कि मनुष्य की सभी सानसिक क्रियाएँ संबेदनों ( 860580005 ) झौर बिंबों ( 1एए०865 ) श्श्र




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