मनोविश्लेषनण और मानसिक क्रियाएँ | Manovishleshan Aur Mansik Kriyanen

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Manovishleshan Aur Mansik Kriyanen by डॉ. पद्मा अग्रवाल - Dr. Padma Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनोविदलेवण लौर मानसिक श्रियाएँ जा सकता कुछ समय ही बाद रोग के उभरने की संभावना रहती है तीसरी बात यह है कि सम्मोहन से संक्रमण (धथाितट0ए९ ) को समस्या सुर्झाना असंभव सा है । इन कठिनाइयों के कारण फ्रायड नें मानसिक रोगों की इस चिकित्सा-विधि को छोड़ दिया । फिर भी जंसा उन्होंने अपनी पुस्तक साइकोएनैलिसिस एक्सप्लॉरिंग न हिडेन रीसेस ऑफ द माइन्ड भें लिखा है मनोविदठेषण के विकास के इतिहास में सम्मोहन की उपयोगिता नहीं भूली जा सकती । ज्ञान और चिकित्सा क्षत्रों मे मनोविष्ठेषण वहीं काम करता है जो रूपान्तर में सम्मोहन करता था । तात्मयं यह है कि सम्मोहन ने मानसिक चिकित्सा की पृष्ठभूमि निर्दिचित की और उसी के आधार पर मनोविदलेपण के अबाघ मनः आयोजव (८ 8550078६1071) की विधि का विकास हुआ । अनुभव और निरीक्षण से फ्रायड इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सम्मोहन बिता भी पिछली और दबी-छिपी भावना-म्रंथियों की स्मृति जगाना (0६1९9 पिंणा एड घिद 856 एणापुजच्जएड) संभव है । बीती घटनाओं तथा दुःखपूर्ण अनुभवों की पुनःस्मृति के लिये उन्होंने अदाध मन/शायो जून की ही विधि सबसे अधिक उपयुक्त पायी । यह विधि बहुत कुछ कंथलिकों की स्वीकृति-विधि (०्णर्फल्डडा01) ) की ही तरह है । यह बातचीत के द्वारा उपचार करना है । फ्रायड को विद्वेषकर उत्तेजना शारकों और ब्राअर से मिली । इस प्रकार मनोविइलेषण का भारम्भ और विकास हुआ । आगें-पीछे कई महत्व के ग्रंथ# प्रकाशित हुए एक मनोविदलेषण समिति की स्थापना हुई इसके लगभग सभी प्रमुख मनोवैज्ञानिक सदस्य बनें । और फिर तो फलस्वरूप मनों- विश्लेषण का विकास तीव्र गति से हो चला । पिछले पचास वर्षों मे इसकी प्रगति इतनी तीव्र रही कि इसमें से दो भर बड़ी शाखाएं फूट निकलीं जो वैयक्तिक मनोविज्ञान (एताशंलेएकों 85० १९०० 1पटि्जिटटाडघिएए 0६ लिच्टकाएा5 १९०१ ?5४८५0-92घ0010छुए 0 छिफ्टाएपघ४ 112 ९०५ फफप£ धशाएं दंड हि. हाधिघं00 ६0 (९ ए0८ााछटा008 इ९ १० हि0एएा261070. एव 95 प्र०02029221 50टांटाडि डर




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