व्रज भाषा सूर - कोश खंड - ५ | Vraj Bhasha Soor Kosh Part 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
37.68 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
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डॉ. दीनदयालु गुप्त - Dr. Deenadayalu Gupta
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प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(८७ ) दधि-सुतःसुत-बाहदन--संश्ञा पुं. सं दधि ( उदघि लू समुद्र) +सुत (--समुद्र या जल से उत्पन्न कमल) + सुत (--कमल से उत्पन्न ब्रह्मा) ने बाइन -त्रह्मा का बाइन हँस)] हंस पक्षी । उ.-ठढी जलजा-सुत कर लीने । दधि-सुत-सुत बादन दित सजनी भष बिचार चित दीने--सा ७२ । दधि-सुत-सुत-सुत-सुत-्ररि-मष-सुख--संज्ञा पं. सं. दर्धि .... ( उदाघि-समुद्र )+सुत ( समुद्र या जल का पुत्र कमल )+ सुत (कमल से उत्पन्न ब्रह्मा) सुत ( प्-ब्रह्मा का पुत्र कश्या ) न सुत (कश्यप का पुत्र सूर्य ) +अ्रि (-- सूर्य का शत्रु राहु )+ भष (राहु का. भकय चंद्रमा चंद्र ) न पुस्व (- चंद्रमुख ) चंद्रमुख । उ.-दुरद मूल के दि राधिका बैठी करत सिंगार । दघि-सुत-सुत- सुत-सुत-झ्ररि-भष-सुख करे बिसुख दुख भार नासा ३२४ । दधि-सुत-सुत-हितकारी--संज्ञा पुं. सँ. दघि (- उदघि --समुद्र )+सुत ( समुद्र या जल से उत्पन्न कमल ) . +सुत (--कमल्त से उत्पन्न ब्रह्मा ) न सुत (ब्रह्मा का पुत्र वशिष्ट ) + दितकारी (ल्लवशिष्ट का सहायक श्रग्नि ) श्रग्नि । उ.--दचि-सुत-छुत-छुत के हितररी सज-सज सेज बिछावे-- सा ६४ । दुधि-सुला-संज्ञा खी सं उदधिन-छुता | सीप सीपी । उ -दघि-सुता सुत श्रवलि ऊपर इंद्र श्रायुघ जानि । दघि-स्नेह--संज्ञा पे सं दही की मलाई। दधि-स्वेद--संशा पं. से | छाछ मद्ठा । दधीच दधीचि- संस ५. सं दधीचि | एक वेदिक ऋषि । इनके पिता का नाम किसी ने श्रथ्व लिखा हे श्रौर किसी ने शुक्राचायें । इन्होने देवताओं की रक्षा के लिए वज्य बनाने के उद्देश्य से श्रपनी हड्डियाँ दान देदीथों। दुधीच्यस्थि--संश्ञ पूं. सं. (१) वच्च । (२) हीरा । दनदनाना--क्रिं. श्र श्रनु. ( १) दनदन का दाब्द करना । (२) खूब झानंद मनाना । दुनादुन--क्रि वि झनु. 1] दनदन शब्द के साथ | दुु- संज्ञा खत्री सं. | दक्ष को एक कन्या जो क्द्यप को ब्याही थी झर जिसके चालीस पुत्र हुए जो दानव कहलाये | दूनुज-संज्ञा पं. सं. (१) दक्ष की कन्या दनु से उत्पन्न झसुर राक्षस । (२) हिरण्यकशिपु । उ.-- भक्त बछल बपु घरि नर केहरि दनुज दह्मौ उर दरि सुरसाइ--१-६ । (३) कंस । (४) रावण । दुनुजदलनी-- संज्ञा स्त्री से. | दुर्गा ॥ न दनुजपति-अनुज-प्यारी-संच्ञा स्त्री | सं दलुज ( न्ल्देत्य) +पति (राक्षतों का स्वामी रावण )नशनुज (रावण का छोटा भाई कुंमकरण ) + प्यारी (कंमकण की प्रिय वस्तु निद्रा) निद्रा नींद | उ.- दनुजपति की श्रनुज प्यारी गई निपट बिषार -सा. २४। दूनुजराय- संज्ञा पूं. सं. दबुजन हिं राय हिरण्य- कदिपु । (२) कंस । (३) रावण | दूनुज-सुता--र्सज्ञा स्त्री. से | (१) पुबना। उ.-दठने सुता पदिले संद्ारी पयपीवत दिन सात-- र४६ ३ | दुजारि--संज्ञा पूं. सं. दानवों का शत्रु । दूनुजेंद्र दलुजेश--संशा पं. सं 1 (१) हिरिण्यकदिपु (२) रावण । (३) कंस । दनुनारी--संश्ञा स्त्री. सं. | राक्षसी प्रतना। उ.- कागासुर सकटासुर मारवयौ पय पीवत दनु-नारी ६८६ । दूनुसंभव--संज्ञा पं. सं दनु से उत्पन्न दानव । दुनू--संज्ञा ख्री स दनु दक्ष को कन्या दनु । संज्ञा पूं. सं दानव | देत्य राक्षस । दुन्न--संज्ञा पं. अनु | तोप छूटने का दाब्द । दपट--संश्ञा स्त्री . हिं. डपट | डपट घुड़की । दपटना--क्रि. स हिं. दपट | डॉटना घुड़कना । दूपु--संज्ञा एं. सं दर्प घमंड श्रहंकार । उ.-सात दिवस गोबर्धन राख्यो इन्द्र गयौ दपु छोड़ि । दुपेट--संश्ञा स्त्री हिं. दपट | डपट घुड़की । दुपेटना--क्रि. स. हिं. दपटना | डॉटना-घुडकना | दफन-संज्ञा पं. अर. दफन (१) गाड़ने की क्रिया | _. (२) सुरदा गाड़ने को क्रिया । दफनाना--क्रिं ठ हिं..दफूननाना _ (१) गाड़ना ।
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