व्रज भाषा सूर - कोश खंड - ३ | Vraj Bhasha Soor Kosh Part - 3

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Book Image : व्रज भाषा सूर - कोश खंड - ३  - Vraj Bhasha Soor Kosh Part - 3

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डॉ. दीनदयालु गुप्त - Dr. Deenadayalu Gupta

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प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(8) दिशा । (१०) माता । (११) दूध देनेवाले पशु | (१२) जीभ जिह्ला । संज्ञा पुं.--(१) बेल । (२) शिव का नंदी । (३) घोड़ा । (४) सूर्य । (४) चंद | (६) वाण तीर । (७) गवया । (८) प्रशता करनेवाल्ा । (8१ आकाश । (9०) स्वर । (११) जल । (१२९) बच्च। (१३३ | शब्द । (१४) नो का अंक | (१५) शरीर के रोम । श्रव्य फ़ा | यद्यपि । क्रि भर हिं. गया]. गया । उ.-दूर बढ़ि गो स्याम सुंदर ब्रज संजीवन मूर--सा ३८ | गोईठा--संज्ञा पुँ. सं गो+प्रिष्ठा 1 कडा उपला । गोईंड़ -संज्ञा पु सं. गोष्ठ (१) गाँव की सीमा | (२) गाँव के आसपास की भूमि । गोइंदा--संज्ञा पुं. फ़ा गुप्त सेदिया गुप्तचर । गोइ--क्रि स हिं गोगा छिपाकर लुकाकर । सुहा --लेत मन गोइ--मन चुरा लेते हैं मन हर खेते हैं | उ.--नागर नवल कँवर बर संदर मारग जात लेत मन गोइ--१०-२१० । मन रथ गोइ--मन चुराकर रख लिया छिपा लिया । उ.--- कही घर दम जाईिं कैसे मन धस्थों तुम गो--इ ११६४ । राखह॒ गोइ--छिपाकर या सम्हाल कर रखो । उ.--हाँघी होन लगी है ब्रज में जोगहु राखहु गोइ--३०२१ | संज्ञा पु . हिं. गोल गोय गेंद । गोइन --संज्ञा पुं.--एक तरह का खग | ऐइयाँ--संज्ा पुं. स्त्री हिं. गोहनियाँ साथ में रहनेवाला साथी सहचर सखी सददेली । गोइ--क्रि. स हिं. गोना छिपा लिया लुका लिया | उ.--सूर बचन सुनि हंसी जसोदा ग्वालि रही सुख गोई--१०-३२२। सुद्दा ले गयो मन गोई--मन चुरा लिया हर लिया या सुग्ध कर लिया | उ --(क) सूरदास सुख मूरि मनोहर ले जो गयौ मन गोई--र८८१। (ख) कपट की करिप्रीति ले गयो मन गोई--३२०६ । संज्ञा पु. स्त्री हि गोइयाँ साथी सखी | गोऊ-ववि. ईि. गोनानऊ (प्रत्य) छिपानेवाला हरनेवाला | उ.--सूरदास जितने रंग काछुत जुबती- जन-मन के गोऊ हैं | गोए--क्रि स हिं गोना छिपा लिये अदश्य कर दिये । उ. --चतुरानन बछरा ले गोए फिरि मांडव आए तिहिं ढॉँव--४रेठद | गोकंटक--संज्ञा पु . | सं. गोखरू | गोकुन्या-्संज्ञा स्त्री सं कामघेनु | गोकर--संज्ञा पं सं. सूय॑ रवि | गोकण--संज्ञा पु. सं (१) मलाबार का वह क्षेत्र जो शिव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है । (२) इस क्षेत्र की शिवसूर्ति । (३) खन्चर । (४) एक साँप | ( ) बालिश्त बित्ता | (६) काश्सीर का एक प्राचीन राजा | (७) शिव का एक गण | (८) एक सुनि । (8) गाय का कान | वि --जिसके कान गाय की तरह लंबे हों । गोकर्णी--संज्ञा स्त्री सं मुरहरी नामक लता | गोकील - संज्ञा पु. सं (१) हल | (२)मूसल । गोकुंजर--संज्ञा पु . सं] (१) बेदी | (२) शिव का नदी | गोकुल--संज्ञा पूँ. सं (१) गेयों का सुंड या समूह । (२) गेयों के रहने का स्थान गोशाला खरिक । (३) एक प्राचीन गाँव जो. चतंसान मथुरा के पूरे दक्षिण में प्राय तीन कोस पर जमुना के दूसरे किनारे स्थिति था । अब यह महाबन कहलाता है | श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था यहीं बीती थी | वतेसान गोकुल् इससे मिनन नये स्थान पर है । गोकुलचंद--संज्ञा. पुं. सं गोकूल +चंद्र गोकुल- वासियों को चंद्र के समान सुख-शांति देनेवाले श्रीकृष्ण । उ -हिंडोरना कूल्नत गोकुलचंद--२२८१। गोकुन्ननाथ गोकु त्पति गोकुन्लराइ--संशा पुं सं गोकुल के स्वामी श्रीकृष्ण | उ --गोकुन्नाथ नाथ सब जनके मोपति तुम्इरे हाथ--सा. ७६४ । गोकुलस्थ--वि सं गोकुलआआम निवासी | संज्ञा पुं. स |] (१) वरलभी गोसाइयों का एक सेद । (२) तेलंग ब्राह्मणों का एक सेद | गोकोस--संज्ञा पुं. सं गो + क्रोश उतनी दूरी जहाँ तक गाय का रभाना सुनाई दे छोटा कोस |




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