बैंकिंग | Banking

Banking by कमलेश कुमार त्यागी - Kamlesh Kumar Tyagi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषा के क्षेत्र में आर जाते हैं परन्तु मनुष्य के श्रतिरिक्त श्रन्य कोई जानवर अथवा वस्तु इसके क्षेत्र में नहीं श्रा सकती । भ्रधिकांश परिभाषाश्रों में यह कठिनाई भ्रनुभव होती है कि वे सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों हो दृष्टिकोण से समान रूप में सही नहीं होती हैं । उदाहरण के लिए रेखागणित शास्त्र में एक सरल रेखा की परिभाषा इस प्रकार की जाती है £-- सरत रेखा दो दिए हुये बिन्दु्ों के बीच का न्युनतम्‌ भ्रन्तर होती है । सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से इस परिभाषा के विरुद्ध कुछ भी कहना सम्भव नहीं है परन्तु व्यावहारिक जोवन में जिस रेखा को हम सरल रेखा कहते हैं वह सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से पुर्णंतया ऐसी नहीं होती है । वह भ्रघिक से श्रघिक लगभग सरल रेखा होती है । व्यवहार में इससे काम तो चल जायगा परन्तु वह तकंशास्त्री को सन्तु्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं है । साधारण उपयोग की लगभग सभी वस्तुभ्रों की परिभाषा के सम्बन्ध में यट्टी कठिनाई _ है । इसके अतिरिक्त जब भी हम किसी दब्द की परिभाषा करते हैं तो हमें परिभाषा में उपयोग किये हुये लगभग प्रत्येक शब्द की भी परिभाषा करनी होती है क्योंकि साधारण बोल-चाल में इन बब्दों का उपयोग भिन्न-भिन्न श्रर्थों में किया जाता है । यहों बस नहीं विभिन्न अथंदास्ियों ने एक ही दब्द की अलग-अलग परिभाषाएं की हैं। परिणाम यह होता है कि किसी एक दाब्द की परिभाषा करने के लिए दाब्दों का चुनना भी कठिन हो जाता है । भ्रत। यह सम्भव है कि मुद्रा की एक साधारण सी परिभाषा देकर एक व्यापारी उद्योगपति श्रथवा साहुकार को सन्तुप्र किया जा सके परन्तु एक तकंशासत्री अथवा एक सैद्धान्तिक पाठक उसे स्वीकार नहीं करेगा । इसलिए मुद्रा की परिभाषा के सम्बन्ध में यह श्रावश्यक है कि जो भी परिभाषा दी जाय वह सैद्धान्तिक तुधा व्यावहारिक दोनों ही हृष्टिकोशों को सन्तुष्ट कर सके । मुद्रा की विभिन्न परिभाषायें प्रारस्पिक-- शब्दव्युत्पत्ति के अनुसार ( ़फ़ा010्0911फ) झंग्रेजी भाषा का दाव्द मनी (01006) जिसके लिए हिन्दी में मुद्रा शब्द है लैटिन भाषा के दाब्द मोनिटा (0 01608 से बैना है । मोनिटा देवी जुनो (00त6688 पपा10) का प्रारम्भिक नाम है जिसके मन्दिर में रोम (0706) की मुद्रा का निर्माण किया जाता था । इटली की प्राचीन कथाओं में जनों स्वर्ग की रानी का नाम है । यही कारण है कि मुद्रा को कुछ लोगों ने स्वर्गीय श्रानन्द का प्रतीक माना है श्रौर इसीलिए शायद इस देवी के मन्दिर में मुद्रा बताने का काम किया जाता था । लैटिन भाषा में इसे समय मुद्रा के लिए जो शब्द पाया जाता है वह पेक्यूनिया ( ?60पा078) है । यह दाब्द पेकस (6008) से बना है जिसका श्रथें पशु-सम्पत्ति से होता. है । ऐसा प्रतीत होता है कि रोम में भी किसी काल में भारत की भांति पशुत्नों को मुद्रा के रूप में उपयोग




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