आधुनिक शिक्षा - मनोविज्ञान | Adhunik Shiksha Manovigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36.57 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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ईश्वरचन्द्र शर्मा - Ishwarchandra Sharma
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डॉ. पी. टी. राज - Dr. P. T. Raj
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आर मी पे धर आधुनिक न गे हि हि हु केसी साधारण व्यक्ति से मन का श्रथ पूछा जाय ते हैं जो हमारे श्रन्द्र है वह हमारे लिए विचार को ब्याखूया श्रवश्य करनों चाहिए यदि हि तो बह कुदेगा कि मन उस वस्तु को कह करता हूँ अदुनव करता हूं तथा संकल्प करता है । वद्द एक श्रदृश्य आध्यात्मिक वस्तु है भातिक चही झधिक-से-शधिक वह व्यक्ति इतना कह देगा कि मन एक प्रकार का छोटा मनुष्य है श्रथवा एक सूत है जो कि हमारे श्रन्दर रहता है । किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मन की यह व्याख्या पर्याप्त नहीं है | श्राघुनिक विज्ञान श्रात्मा तथा मन के स्वतस्त् अस्तित्व को नहीं मानता । इसमें कोइ सन्देह नहीं कि विचार करना शचुमव करना तथा संकल्प करना मन की विविध क्रियाएँ हैं । किन्तु यह स्मरण रखना पाहिए कि मन कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो कि इन क्रियाओं से मिस्न स्ततस्त्र अस्तित्व रखता हो । मन का वैज्ञानिक श्रथ मनोकाय श्थवा मनोदत्ति (16081 घ०9्लशध्स) माना जा सकता है। जिस प्रकार आाहन पीठ वाजू इत्यादि मिलकर एक कुर्सी बनते हैं उसी प्रकार विश्वार करना श्रदुभव करना संकल्प करना कल्पना करना भव करना झ्रादि सब मनोकरियाएँ मिल- कर मन का निर्माण करती हैं । श्राधुनिक मनोविज्ञान में मन श्रथवा झ्रात्मा का कोई स्थान नहीं हू । व्यवद्दारवारी मनोवैज्ञानिक (छि6106४ा0प7756) तो चेतना का अस्तित्व भी नहीं मानते । समय था जब कि मनोविज्ञान को केवल मात्र चेतना का विज्ञान माना जाता था किन्ठु श्राघुनिक मनोविज्ञान में इस परिभाषा का कोई स्थान नहीं है । वास्तव में हमारे मनोजीवन के दो भाग हैं । उसके आान्तरिक भाग को चेतना (00780- 0प8116855) तथा बाहरी भाग को व्यवहार (9िकपा0पा कहा जा सकता हे । उदाहरणस्वरूप जब कोई व्यक्ति क्रोध करता है तो उसके मन में जो उत्तेजना का श्रनु- भव होता है उसको क्रोध की चेतना और उसके शरीर में श्रथवा उसकी आकृति में जो परिवतन होते हैं उनको शारीरिक व्यवहार (5ि०पघए उिलाघरां0पए) का नाम दिया जा सकता हें । मनोविज्ञान मन के आ्रान्तरिक तथा वाहरी दोनों भागों से सम्बन्धित हे. इसलिए हम मनोविज्ञान को केवलमात्र चेतना का शास्त्र नहीं कद सकते | मन की व्यापकता--इसके श्रतिरिक्त चेतना केवल जाय्रत श्रवस्था को ही कहा जाता है | किन्तु मन स्वप्नावस्था में भी कार्य करता रहता है । मनोविज्ञान का सम्बन्ध मन की सब श्रवस्थाओ्ओं से है चाहे वह चेतन हों झ्रचेतन हों अथवा श्रर्ध-चेतन हों । इसी प्रकार मनोविज्ञान बाल्यावस्था प्रौढ़ावस्था एवं ब्रद्धावस्था की मानसिक कियाशओों को समान दृष्टि से देखता है । मनोविज्ञान में मन शब्द का श्रर्थ बहुत व्यापक है। मन का अर्थ हमारी सम मनोवत्तियों श्रथवा मानसिक क्रियाओं से है । केवल इतना ही नहीं अपितु मनोविज्ञान तो पशुश्नों की मनोबू त्तयों का भी निरीक्षण करता है । इसके श्रतिरिकत असा- बारिगए (3 0 ९८ मनोदत्तियाँ भी मनोविज्ञान का विषय हैं । उदादरणस्वरूप एक विक्त श्रयवा पागल व्यक्ति का मन भी मनोविज्ञान का विच्वारणीय विषय बन सकता दे। ही हद /णपं. कफ लि न बट्टेर के थे कर
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