समुद्रगुप्त | Samudragupt
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.88 MB
कुल पष्ठ :
107
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रो. रविशंकर अंबाराम - Pro. Ravishankar Anbaram
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)् हमार प्रांचीन पितृदेश छोग भये वे इन नदियों को इन्डिस कहने ढगे । और उस प्राम्त के निवासिओं को इंडोइ के नाम से पुकारने के । इस परसे ही इमारे देश का इंडिया यह अंग्रेजी नाम पड़ा । ऐेसा किन्दीं का कथन है । इंता के पह़िजे दूसरी शताब्दि के अन्तिम समयमे हेन वंश के बुठी महाराज के समय में प्रथम चीन के साथ दमारा ऐतिहासिक सेंबन्ध स्थापन हुवा तब चीन के छोगोंनि हिन्दकों युभान-इ अथवा विन-दु जयोत् हिन्द द शिन-टु अधोत् सिन्खु कहाथा | संक्षेप ले यह कि हिंदुस्तान में रहने वाले आर्य छोगों का सिन्धु वा हिन्द नाम हिन्द के बाहर रहने वठे छोगोनें रखा होगा । आयेठोग किस प्रकार के थे उन की चाऊ ढारू ( रस्मो- रिवाज ) कैसी थी । उन की धार्मिक राजकीय एवं साम जिक स्थिति कैसी थी। इस विषय में बेदअन्थों में से बहुतसी बातें ज्ञात हो सकती. हैं। वेद भी मित्र भिन्न समय में रचे गये थे | कतिपय बिद्वान छोगों का मत है कि वे ईसा के दो दजार बर्ष पूर्व के हैं । तब दूसरों की राय में इंसा के दूध हजार वर्ष से भी पहिडे दिखे गये होंगे । आरंभ में आर्य लोग बहुत पराक्रमी एवं झूर थे । उन्हों ने दस्यु और राक्षस ढोनें। को जीत लिया था ( इनके सिवाय पिशाच यक्ष नाग पुंदू पुषिन्द नीय सांबर अंश्र आदि अनार जातियों कोभी ) दे कभी कभी आपस में छाई करते थे । उस समय की उनकी संस्कृति ऐदिक प्रकार
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