कुवाल्यानंद | Kuvlayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसकी व्याख्या आत्मापेणं मानसो छास शिवकर्णादतम्‌ आनन्दलहरी चन्द्रिका शिवमहिमकालि- कास्तुति रत्नत्रयपरीक्षा तथा इसकी व्याख्या अरुणाचलेश्वरस्तुति अपीतकुचास्बास्तव चन्द्र- कलास्तव शिवाकंमणिदीपिका शिवपूजाबिधि नयमणिमाला तथा इसकी व्याख्या ॥ ं हे. रामानुज॑मसतविषयक ५ अ्न्थ -- नयनमयूखमालिका तथा इसकी व्याख्या श्रीवेदांतं- देशिकविरचितयंंदवाभ्युदय की व्याख्या तथा वेदान्तदेशिकविरचित पादुकासहस्र की व्याख्या एवं वरद्राजस्तव । कि ः ४. माध्वसिद्धांतानुसारी २ अन्थ --न्यायरत्नमाला तथा इसकी व्याख्या । ५ ब्याकरणविषयक 9 अन्थ -- नक्षत्रवादावली । ६ पूचंमीससिशास्र पर र अन्थ --नक्षब्रवादावली तथा विधिरसायनम्‌ । ७ अलकारशास््र पर ३ घ्न्थ --इत्तिवार्तिक चित्रमी मांसा तथा कुवलयानन्द । अप्पय दीक्षित मूलतः मीमांसक एवं वेदांती हैं । उनका निस्र पद्य तथा उसकी कुवलयानन्द की दृत्ति में की गई व्याख्या अप्पय दीक्षित के तथ्िषियक पांडित्यका संकेत कर सकते हैं --... आश्रित्य नूनमस्तद्यतयः पद ते देहक्षयो पनत दिव्य पदा सिमुख्याः छावण्यपुण्यनिचयं सुहदि त्वदास्ये विन्यस्य यांति मिहिर॑ प्रतिमासमिन्ञाः ॥ .. कुवल्यानन्द पृ० १०९ जहाँ तक दीक्षित के साहित्यशास्त्रीय पांडित्य का प्रश्न है उनमें कोई मौलिकता नहीं दिखाई देती | कया कुवलयानन्द क्या चित्रमीमांसा कया बृत्तिवा्तिक तीनों अन्थों में दीक्षित का संग्राइक रूप ही अधिक स्पष्ट होता है । बेसे जहाँ कहीं दीक्षित ने मोलिकता बताने की चेष्टा की है. वे असफल ही हुए हैं तथा उन्हें पंडितराज के कट आक्षेप सहने पढ़े हैं। पंडितराज ही नहीं अलंकार- कौस्तुभकार विश्वेशवर ने भी अप्पय दीक्षित के कई मतों का खंडन किया है। अप्पय दीक्षित के इन तौंन अन्थों में इत्तिवार्तिक तथा चित्रमीमांसा दोस्तों अन्थ अ धूरे हो मिलतें हूं । इन दोनों घन्थों में प्रदर्शित विचारों का संक्षिप्त विवरण हम भूमिका के आगामी एृ्टों में देंगे । दत्तिवातिक में केवल अभिधा तथा लक्षणा शक्ति का विवेचन पाया जाता है । चित्रमीमांसा उ्प्रेक्षा्त मिलती है कुछ प्रतियों में अतिशयोक्ति का भी अधूरा प्रकंरण मिलता है । अप्पय दीक्षित के अलंकार संबंधी विचारों के कारण अलंकारशास्त्र में एक नया बाद-विवाद उठ खड़ा हुआ है । पंडितराज ने रसगंगाधर में दीक्षित के विचारों को कस कर खण्डन किया है तथा उन्हें रुय्यक एवं जयरथ का नकली घोषित किया है । इतना ही नहीं बेचारे अप्पय दीक्षित को गालियां तक सुनाई हे । व्याजस्तुति के प्रकरण में तो अप्पय दीक्षित को मददामूखे तथा बेल तक बताते हुए पंडितराज कहते हैं -- उपाठम्भरूपायानिन्दाया अनुश्थानापत्ते श्रतीति- विरोधाचेति सहदयेराकरूनीय॑ किमुक्त दविडपूंगवेनेति। रंसगंगाथर प० ५६३ अप्पय दी क्षित तथा पंडितराज के परस्पर वैमनस्य. की कई किवदंतियाँ प्रसिद्ध हैं जिनके. विवरण में हम नहीं जाना चाहते । सुना जाता है कि यंवनी को रखैल रखने के कारण पंडितराज को जातिवद्िष्क्त




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