विफल विद्रोह | 1320 Vifal Vidroh 1933

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1320 Vifal Vidroh   1933 by अलेक्जेंडर ड्य्माके - Alexandre Dumas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ई था वल्कि कहना तो यों चाहिए कि की शोर ऐसा तन्मय होकर देख रहदा-था किं दोनों की बातचीत की ओर उसका ध्यान नहीं जाता प्रतीत होता था । हमें उस तीसरे व्यक्ति की ओर ध्यान देना चाहिए । वदद ऐसा आदमी था कि तनकर खड़े होने पर अवश्य ही ठम्बे क़द का दिखायी देता किन्तु इस समय तो उसके ठम्वे पाँव झुके हुए थे मोर उसकी बाहें जो अनुपात में छोटी नहीं थीं मुड़कर छाती से छगी हुई थीं । वह घेरे पर झुककर खड़ा हुआ था जिससे उसका चेहरा क़रीब- क़रीब मददश्य था ओर उसके भागे उसका हाथ भी इतना उठा हुआ था कि जिससे मुँद छिप हुआ माछम पड़ता था । उसके बगल में एक नाटे कद का भादमी डँचाई पर बैठा हुआ एक लम्बे क़द के आदमी से बाते कर रहा था जो उस डँचाई की ढाठ पर बार-बार फ़िंसल रहा था भर हर बार फिसलने के बाद भपने पाश्धवर्ती व्यक्ति के अंगरखे का बटन पकड़ लेता था । हाँ मैटर मिटन नाटे कद के आदमी ने छाने से कहा-- में कहता हूं साठसेड के चबूतरे के चारों ओर छाखों आदमियों की भीड़ होगी--कम-से-कम छाखों की । बगैर गिने ही देखो पर कितने आदमी भा गये हैं पेरिस के विभिन्न मुहझें से कितने आदमी रास्ते में हैं और कितने यहाँ पहुँच गये हैं सोठहद दरवाज़ों में से केवठ इस एक दरवाज़े का यद्द दाठ है। छाखों यह बहुत बड़ी तादाद है फ़ियाड छम्बे भादमी




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