शुक्ल - यजुर्वेद का सांस्कृतिक अध्ययन | Shukl Yajurved Ka Sanskritik Adhyayan

Shukl Yajurved Ka Sanskritik Adhyayan by राजकुमार शुक्ल - Rajkumar Shuklसारिका सिंह - Sarika Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तामधा रन दुवरूयत पृतैबॉधियताधिधिश आस्महव्या जहोतन न अथीाछ्क हे अत्त्वजाददि तमिधा के द्वारा गन को पारिचीरित करो इस अतिधिमृत आग्न को छृत की आइततियों से प्रज्जवलित करो । प्रज्वलित अग्नि में पिविध चर पुरोडाशादद हव्यों को होम करो । शतपथ के अनार कृत्तिका रोहिणी मुगशिरा फाल्गुनी हस्त एवं पघत्रा नक्षत्रों में आऔग्न का आधान करना चाहिह्ये । वस्तृत. वैगाब मात की अमावस्या की आन का आध्यान करवा चाहिह्ये वयों कि यह अमावस्या रोहिणी नक्षा में पड़ब्ली है । अग्न्याधेय का रूप अमावस्या ही है | इत यज्ञ में आग्न पवमान अण्नि पावक आग्न आचि तथा अहहतापर्न आदि अग्नि के चिधिध रूप निर्धारित हैं पजिनके लिये यजमान आन में आइति देता है । त॑ त्वा सरमिदिम राष्यरो घृतेन वर्धयामति बृहथ्छोचा यविब्ठय न हे आग्न हम तुम्हें तामिधाओं एवं घ्ताहतियों द्वारा प्रव्दध करते हैं । तुम तर्वदा वरुण रहने वाले हो इस लिये वाद्धि को प्राप्त होते हुये प्रदोपप्ति धारण करो 1 मूलतः इत यज्ञ का प्रयोजन आप विजधिनो शक्ति एवं अमरत्व प्राप्त करना है । सवरमवतं निलिलिसस अलवर वलिदत आवक समाव्यत वि शक्लयुर्वेद में आग्नहोत्र यज्ञ का निरूपण तोतरे अध्याय के ग्यारहवें मन्त्र ते प्रारम्म होता है । प्राप्त सायं आन में दूध की आउइ़ापिं देकर किया जाने वाला यज्ञ आरनहात्र है । इस यज्ञ की प्रात वुर्योदय थे पूर्व तथा सायंकाल तर्यात्त के बाद सम्पन्न कर लेना पाये । सायंकाल को आइति इस मन्त्र ते दो जाती है - ।-..... बुक्लियुर्वेद- 3. । न शकलयजुर्वेद गा उन प




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