सांस्कृतिक गुजरात | Sanskritik Gujrat

Sanskritik Gujrat by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डा हें विवाह थी 119 ' में से कोई या छोटा भाई होता है, हमेशा उसके साथ-साथ रहता है; , उसको '“प्रनुवर'” कहते है । वह छोटों में से इसलिये नियत किया जाता है .कि_नव- . विवाहिता ' वधू उससे बिना घू घट लिकाले ही वात कर सकती है भ्रीर उसके द्वारा “ श्रापस में सन्देश भेजा जा सकता है। चघही वर का खर्जाची भी होता है श्रौर उसके लिये चोंजें खरीदता है तथा “साले, की कंटारी' व “गरु की पोणाकं 'श्रादि भेंट भी विवाह की संमाप्ति पर वही प्रस्तुत करता है । रा ही रात्रि के समय वर-राजा (या बींद-राजो) श्रपती सदय: प्राध्त,साजपुददी८की साज-सज्जा के साथ सवारी लगाकर निकलता है.1.-जलूस के आगे-आगे गाना-वजाना शोता 'चलता है _जिसमें गायक श्रौर नर्तकियाँ होती हैं; उनके पीछे बर के सम्बन्धी घश्नन्य वराती हाथी-घोड़ों पर सवार होकर चलते हैं; उनके चारों श्रोर मशालची घ घुड़सवार...श्रादि रहते हैं; वन्दरकें चलाई जाती. हैं, गलाल उड़ाई: जाती है श्रीर शंख व 'वाँकिया” जोर से चजाया जाता. है;. ढोल ,की माज से, कान चहरे -हो - जाते. हैं; लोगों के चलने से हवा में इतने गदे के बादल उड़ते हैं कि. जलती हुई मणालें. भी दिखाई नहीं देतीं'। इनके पीछे चाँदी की छड़ियाँ लिए हुए लाल श्रंगरखियाँ. पहने 'घोवदार चलते हैं श्रौर फिर शाही छंत्र लगाए हुए प्रसन्न. मुद्रा में वींद-राजा श्राता है; उसके दोनों श्रोर पेँवर डुलते हैं, वह बहुमूल्य साज श्रीर गहनों से सजी-हुई घोड़ी पर सवार होता है श्रौर उसके हाथ में विवाह का चिन्ह-स्त्रूप वहू जड़ाऊ नारियल होता है । उसके पीछे लाल खोलियों में मंढ़े हुए नवकारे लिए वड़ा ऊंट चलता है; इन चककारों पर, वरावर चोट पड़ती “रहती है; श्रोर सबके पीछे विवाह के) गीत गाती हुई स्त्रियों की टोली चलती है.। « ; , स्थान '. ,बर-राजा के इन जलूसों >को देख कर कुछ-कुछ उन +/शोभा-याताशों का भान हो जाता,है जो, पुराने जमाने में, ; उस, समग्र निकाली गई थीं जब सिद्धराज जयसिंह मालवा-विजय करके भ्राया था ग्रौर असाहिलपुर में उसका स्वागत किया , गया था अथवा जूव कूमारपाल श्रपने स्वेताम्वर, जन,साधुद्रों की, मृण्डली सहित - किसी कठन शात्वार्थ में दुजेग शिव भक्तों को परास्त करके लौटा था 1 ।...:.,. जव:जलुस उनके निवास स्थान के वाहर होकर निकलता है तो! वर के घराने के मित्र, बाहर श्राकर वर राजा को - नारियल पेंट करते हैं। श्रन्य सभी जलसों के लोग, चाहे वह गाँव का ठाक्र ही क्यों न हो, चर के-लिए मामें छोड़-देते है; श्रौर ,यदि दो-बर-राजा भ्रामने - सामने * मिल जावें तो वे एक दूसरे के लिए श्राघा-श्र.घा द ९ न 5. यह बालक प्राय: 'वर का छोटा भाई या- मतीजा होतां है। राजस्थान के कई हिस्सों में इसे 'विस्दायक' या 'विनायक” कहते हैं । इसके लिए भी प्रायः ' वे ही मूल्यवान्‌ वस्त्र वनवाए जाते हैं जैसे वर के लिए । कन्यात्ों के भी छोटे-भाई या भतीजे को विनायक बनातें श्रबचर' का श्रथें भी 'अझनुवर या छोटा चर समकना चाहिए । (हि. श्र) हर




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