आदिकाल का हिन्दी जैन साहित्य (६५० - १४५०) | Aadikal Ka Hindi Jain Sahitya(650 - 1450)

Aadikal Ka Hindi Jain Sahitya(650 - 1450) by हरिशंकर शर्मा 'हरीश ' - Harishankar Sharma 'Harish'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(अ) राध (अब) फाण (से) चहुष्पदी (व) चवरीद (क प्रबस्थ (छ) चरिस (ग) चिवाहलों (घ) सम्धघि (क) पवाड़ों (च) ककक मातृवा (९) गौककाव्य परम्परा ए-गौणकाठ्मस परम्परा -प्रननघार्मकता घटना की तूृहल तथा वस्तुजिल्प- इनमें प्रघान काव्यरूप हैं- दोहा- हद छप्पय रेछुअ पाधा विषयप्रधान काठ्य रुपन महारत्ूय थोर पटुटा वी जारउमासा तलहरा सम्बोध संवाद आदिड (३) स्तवन काव्य परंपरा स्तवनस काठ्स रपों में प्रमुख सप बै-उत्साह गत स्तोत्र स्तवन बोलिका स्तृ्वि वीमंती कलश नमस्कार प्रशश्ति सज्फाथ आदि (४) गदूय परंपराएं जैनगदूय बरम्परा उसके विधिध उप विभाजन कालक़म से कृत्तियों का वर्गीकरण तथा सिस्लेबण- सिव्कर्ष (१) प्रमुन्न काव्य पुररेमपराएं- (अ) राश्र काव्यक्साँ का अध्ययम- रख परभ्परा की प्राचीनता- परत के नाश शास्त्र में राध+ माध के माटक-सरस्वती कंहमरण-. पुराणों में राश्- नाणमट्ट काम सूअर अभिमवगुप्त श्रीमदूमा पवन वागमटूट के अनुसार रास का डिल्प- निर्कर्श अदलीलरासक पदानि और उम्र पर विचार संस्कृत काल के पइ्चातू रघ- राजस्थान में राल का रूप संस्कृत कालों के रास- रिपुदारण राश की प्राचीनता-अपपरंश के राप कालाल्तर जे रास फ्रीड़ान राख के विधिध तत्त- १स्‍्वीं शमी उदाजदी तक राध की स्थिति हेकंबर्द्र की रास सम्बस्ती मास्सतापए- मश्रण सदूधत और जिश्ननटा मर मौर- रासक का अ्तर न- ११वीं शतावुदी लक मूहम यान और अभिनव थी रब की लिक्स वस्तू थी १शूवीं श्ताबुदी में राख विकसक बस में परिव्तेन- चर सीहियों का समाओेश- कया तस्वका समावेश- चरित झंकीतन का सवाविड- रासा बंध १रवीं थे ₹५वीं शतावुदी तकराश साहित्य के शिलष उचकी प्रमुख प्रसल्तियँ और चिडेक्साओं एवं उसके लिकास की कड़ियों का विभिरत टुषिटयों से अच्यवन-पदेंगीत व मुस्यकला के उप मैं-छमदाँ की दृष्टि सै - विषय की टुष्टि दे- साहित्यिक झपों की डुष्टि हे कया थर्े की डष्टि है. इन चिधिरन दुष्टिटियोँ थे राख का विस्टेवन लावा लेक रूप एवं निर्क्




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