विश्वकवि रविंद्रनाथ ठाकुर | Vishvakavi Ravindranath Thakur

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Vishvakavi Ravindranath Thakur by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० विद्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर कुछ ही समय बाद उन्हें यह महसूस हुआ कि युवक केशवचंद्र सेन जिस तेजी से हिंदू धर्म को परंपरा के मूल पर कुठाराघात करते चले जाते हैँ उससे केवल हिंदू धर्म ही नहीं स्वयं ब्राह्मथर्म के मूल तत्त्व ही छिन्न हो सकते हैं । घीरे-घीरे दोनों के बीच मतभेद बढ़ता चला गया और खाई चौड़ी होती गयी । असल बात यह थी कि देवेन्द्रनाथ को जिस सामाजिक तथा पारिवारिक कट्टरता और रूढ़िबादिता के दलदल से धीरे-धीरे ऊपर उठना पड़ा था उसका ठीक ज्ञान केशवचंद्र को नहीं था । देवेन्द्रनाथ ने बहुत-सी बातों में मूलगत सुधार अवश्य किये थे किन्तु अभी बहुत-सी ऐसी बातें झेष्र थीं जिनमें आमूल परिवतन करने की उनमें न तो प्रवृत्ति ही थी और न साहस । उदा- हरण के लिये हिन्दू धर्म को जाति-भेद प्रथा को वह किसी-न-किसी रूप में अभी तक मानते थे । ब्राह्म गेतर को ब्राह्म-मंदिर में वेदि ग्रहण का अधिकार हैं यह बात उन्होंने कभी स्वीकार नहीं की । यज्ञोपवबीत-घारण को वह ब्राह्म धर्म का आवश्यक अंग मानते थे । स्त्री-स्वाधीनता के संबंध में भी वह रूढ़ि - गत विचारों के पक्षपाती थे । उनके यहाँ बहुत ही छोटी उम्प्र में लड़कियों का विवाह करने की प्रथा थी । उनके सबसे छोटे लड़के रवीन्द्रनाथ का ज़िवाह ग्यारह वर्ष की लड़की से हुआ था । तब रवीन्द्रनाथ स्वयं २३ वाँ वर्ष पार कर चुके थे । अन्तर्जातीय विवाह के भी वह पक्षपाती नहीं थे । यद्यपि ठाकुर लोग स्वयं छोट किस्म के ब्राह्मण समझे जाते थे तथापि देवेन्द्रनाथ नें अपने अवेबल द्वारा अपने लड़कों और लड़कियों का वैवाहिक संबंध उच्चकोटि के ब्राह्मगों के साथ करने में कभी कोई बात उठा न रखी । किसी ब्राह्ममेतर परिवार के साथ ठाकुर परिवार के किसी भी व्यक्ति का वैवाहिक संबंध कर्भः स्थापित नहीं हुआ । पर केशव्चंद्र एक तो स्वयं कांयस्थ थे दूसरे हिंदू कालेज के (जो बाद में ब्रेसीडन्पी कालेज के नाम से रुपात हुआ) छात्र रह चुके थे तीसरे वह ईसाई धर्म से भी बहुत अधिक प्रभावित हो चुके थे । इन कारणों से वह हिंदू धर्म की किमी भी रूढ़िवादी प्रथा या प्रवृत्ति का लेश भी ब्राह्म्रमं के भीतर सहन करना नहीं चाहते थे। अतएव देवेन्द्रनाथ और उनके बीच संघ




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